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________________ प्रण-पूर्ति आनन्द श्रावक ने भगवान महावीर के चरण-कमलों में उपस्थित होकर सत्य को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी और सत्य पर अचल रह कर अपने जीवन की मंजिल तय की थी। ___मनुष्य प्रतिज्ञा करता है और एक आदर्श बना लेता है। और जब उस पर चलता है, तो सारा का सारा जीवन उसी पर चलते-चलते गुजार देता है। यही धर्म, संस्कृति और सभ्यता है। अतएव मैं समझता हूँ कि सत्य का मनन, भाषण और आचरण हमारे जीवन के सब से बड़े, मौलिक और ऊँचे तत्त्व हैं और उन्हीं में, इस तरह से, सारे धर्मों का रहस्य आ जाता है। हम अपने प्रति ईमानदार रहेंगे, समाज के प्रति ईमानदारी बरतेंगे और अपने आदर्श एवं सिद्धान्त के प्रति प्रामाणिक रहेंगे, इस प्रकार की तैयारी हो जाने पर व्यक्ति का जीवन धर्ममय हो जाता है। प्रतिज्ञा और संकल्प : ___ एक मनुष्य ऐसा है, जो प्रतिज्ञा नहीं लेता है, किन्तु प्रतिज्ञा लेने के लिए विचार एवं चिन्तन करता है। वह उस विषय में, अज्ञान में नहीं, ज्ञान में है। विवेक और विचार में है। किन्तु अपने-आप को उस भूमिका में नहीं पाता है और इस कारण प्रतिज्ञा नहीं ले रहा है। दूसरा व्यक्ति वह है, जो प्रतिज्ञा लेते देर नहीं करता है, हाथ उठाता है, तो झट से हाथ खड़ा कर देता है या प्रतिज्ञा लेने के लिए खड़ा हो जाता है, किन्तु प्रतिज्ञा ग्रहण करके ठीक रूप में उसका आचरण नहीं करता और अवसर मिलते ही उसे भंग कर देता है। इस प्रकार जीवन की दो धाराएँ हुईं। इन दोनों धाराओं पर जैन-शास्त्रों ने विचार किया है कि कौन कैसी है और कौन कैसी है ? शास्त्रों ने बतलाया है कि जो प्रतिज्ञा नहीं ले रहा है, जो अपनी दुर्बलता को ध्यान में रखता है, अपनी भूलों को समझता है और अपने प्रति प्रामाणिक होने के कारण प्रतिज्ञा ग्रहण करने का दंभ नहीं करना चाहता, उसे पाप का परित्याग न कर सकने के कारण पापी कहा जा सकता है; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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