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________________ सत्य दर्शन / १२१ का ख्याल न करके कहीं बैठ जाते हैं, किसी के साथ चर्चा या विचार करने लग जाते हैं और इस प्रकार घण्टों पर घण्टे व्यतीत हो जाते हैं। उधर आपके निमन्त्रण के कारण सारा परिवार रुका रहता है। अब आएंगे, आते ही होंगे, इस प्रकार इन्तजार करता रहता है और आप हैं कि जहाँ बैठ गए, सो बैठ गए या अन्य आवश्यक कार्य में जुट गए, निमन्त्रणदाता को दिए समय का, उसकी सुविधा- असुविधा का कुछ भी ख्याल नहीं करते। आप नहीं सोचते कि आखिर उसे भी कोई आवश्यक कार्य हो सकता है, उसे भी परेशानी हो सकती है। आप उसके समय की हत्या कर देते हैं । ___ यह बात आपको साधारण-सी मालूम पड़ेगी। आप सोचते होंगे-अजी, यह तो मामूली-सी बात है। किन्तु, ऐसी मामूली-मामूली बातें मिल कर ही हमारे जीवन का निर्माण करती हैं। किसी को दिए समय पर न पहुँच पाने का अर्थ यह है कि आप वक्त पर अपने जीवन को नहीं बना पाए, पिछड़ गए। घर में आग लग जाए और तत्काल आग बुझाने की आवश्यकता हो, किन्तु आप समय पर न पहुँच पाएँ, तो परिणाम यही होगा कि घर राख का ढेर हो जाएगा। उस समय आप विलम्ब से पहुँचने को साधारण-सी बात समझेंगे और उसे कोई महत्व न देंगे। कह देंगे-अजी, थोड़ी-सी देर हो गई, तो क्या हो गया ? ऐसा सोचने और कहने वाले को बहुत अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है। तो, हमारे आध्यात्मिक चिन्तन का भी यही आदेश है कि हम किसी से कोई वायदा करें, तो हजार काम छोड़कर भी उसे समय पर पूरा करें। अगर कोई अनिवार्य कारण उपस्थित हो गया है और आप नियत समय पर नहीं पहुँच सकते, तो उसे इस बात की सूचना तो भेज ही सकते हैं। ऐसा करने से आपके व्यावहारिक सत्य की रक्षा होगी और दूसरे की व्यवस्था भंग नहीं होगी, उसे परेशानी नहीं होगी, उसका समय नष्ट न होगा। हमारे देश में कोई सभा-सोसाइटी होती है या किसी का प्रवचन होता है, तो क्या देखते हैं ? जनता को सूचना देते समय सोचा जाता है कि लिखे समय पर तो लोग आएँगे नहीं, अतएव आठ बजे कार्य प्रारम्भ करना है, तो साढ़े सात बजे का समय लिखा जाए। ऐसा ही प्रायः किया जाता है। जनता मन में समझती है कि साढ़े सात का समय लिखा गया है, तो आठ-साढ़े आठ से पहले क्या काम आरम्भ होने वाला है। वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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