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________________ १२२/ सत्य दर्शन इसी समय पर आती है और इसी समय पर वास्तव में कार्य प्रारम्भ होता है। कोई भला आदमी नियत समय पर आता है, तो देखता है कि साढ़े सात बज चुकने पर भी सभा का कोई सिलसिला नजर नहीं आता। इस प्रकार सभा के संयोजक जनता को धोखा देने की चेष्टा करते हैं। उनमें पहले ही असत्य ने अपनी जगह ले ली है। इस व्यापक अप्रामाणिकता को देख कर ही अनुमान किया जा सकता है कि भारतीय समाज का जीवन किस प्रकार असत्य से ओत-प्रोत हो रहा है। सत्य और विज्ञान: पाश्चात्य देशों के साथ भारत का बहुत सम्पर्क रहा है और आज विज्ञान की बदौलत प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ सन्निकट का सम्बन्ध हो गया है । जो विदेशी भारत में इतने वर्ष रह गए, उनकी संस्कृति आज भी चमक रही है। उनमें क्या गुण और अवगुण थे? इस प्रश्न ८ : हाँ चर्चा नहीं करना है। मगर उनमें एक बड़ा गुण अवश्य था कि वे समय के बहुत पाबन्द थे। वे जो समय दे देंगे, उसी पर आएँगे। आठ बजे का समय नियत किया गया है, तो आप देखेंगे कि ठीक समय से चार-पाँच मिनट पहले सारा सभा-हॉल खाली दिखाई देता था और इन बीच के चन्द मिनटों में खचाखच भर जाता है और हजारों मन एक साथ दौड़ते हैं। ठीक समय पर कार्य आरम्भ हो जाता है और ठीक समय पर समाप्त हो जाता है। चार-पाँच मिनट बाद सभा-हॉल फिर ज्यों का त्यों सुन - ड़ता है। सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं। ___ पाश्चात्य लोगों की वह व्यवस्था है। चिरकाल उनके सम्पर्क में रहने के बाद भी हम समय की.वह पाबन्दी नहीं सीख पाए। हमने उनके इस गुण की नकल नहीं की। नकल की भी तो उनकी वेष-भूषा की और बोली की या रहन-सहन की। इन बातों में साधारण आदमी भी उनकी नकल करके अंगरेज बनने में अपनी शान समझने लगा। इसी प्रकार उनके खान-पान और आमोद-प्रमोद को अपनाने का प्रयत्न किया गया, जिनकी हमें आवश्यकता नहीं थी। उनकी अच्छाइयाँ भारतवासियों ने नहीं सीखीं, 'उनकी बुराइयाँ जो इस देश के दृष्टिकोण से बुराइयाँ हैं, गौरव के साथ सीख ली गई। अभिप्राय यह है कि हम जीवन को साधारण समझे जाने वाले व्यवहारों में ही प्रामाणिकता और सत्यनिष्ठा के साथ नहीं बरतते । मगर यह बरताव बतलाते हैं कि जीवन में संत्य है या नहीं? साधारण तौर पर इस प्रकार के असत्य को असत्य नहीं समझा जाता, परन्तु विचार करना चाहिए कि जीवन क्या है ? जीवन के छोटे-छोटे तीत होने वाले अंग भी महत्त्वपूर्ण अंग हैं । इतना विशाल महल खड़ा है, तो उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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