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________________ १२० / सत्य दर्शन सत्य की व्यावहारिक साधना के लिए आवश्यकता इस चीज की है कि हम अपने मन को जगाए रखें और सोने न दें । जब मन सो जाता है और हम समय पर जागृत नहीं होते- सावधान नहीं होते और चाहते हैं कि सत्य साथ दे। पर ऐसा होना कठिन जितना-जितना सत्य जागृत है, उतना-उतना ही मन जागृत रहता है और जितना-जितना सत्य सोता रहता है, मन भी उतना ही उतना सोता रहता है। सत्य के लिए मन में कडक होनी चाहिए। जब तक मन मजबूत नहीं है और असत्य से टक्कर लेने को तैयार नहीं है, व्यक्तिगत जीवन की, परिवार की और समाज की बुराइयों के साथ संघर्ष करने को तैयार नहीं है, तब तक उसका सत्य, सत्य नहीं है। सत्य का असत्य के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। सत्य, समय को परख सकता है और परिस्थिति का ख्याल कर सकता है, सम्भव है वह थोड़ी देर इन्तजार कर ले और यह भी सम्भव है कि अपने प्रयत्नों को कुछ देर के लिए ढीला छोड़ दे किन्तु यह सब थोड़ी देर के लिए ही होगा। वह हमेशा के लिए हथियार नहीं डालता है और डाल देता है, तो सत्य नहीं रहता है। सत्य को हर जगह लड़ना है। उसे कहीं झुकना नहीं है। देश, काल, परिस्थिति और समाज की चेतना-जागृति की प्रतीक्षा उसे करनी पड़ती है, सो इसलिए कि वह प्रतीक्षा वर्षों की जागृति के लिए होगी। प्रतीक्षा के काल में हम सोचें कि समाज में क्या-क्या गलतियाँ हैं और ये किस प्रकार दूर की जा सकती हैं ? इस रूप में देर भले ही लगे, मगर सत्य अपना संकल्प न बदलता है, न ढीला करता है। कभी-कभी तो ऐसा भी प्रसंग आ जाता है कि सत्य को अपने सन्निकटवर्ती पारिवारिक-जन के साथ भी घनघोर युद्ध करना पड़ता है। आज मैं दार्शनिक चर्चा में न जाकर सत्य के व्यावहारिक स्वरूप पर जा रहा हूँ। व्यावहारिक सत्य की हमारे जीवन में बहुत आवश्यकता है। मान लीजिए, आप कहीं बाहर गए हैं और किसी ने आपको भोजन करने का निमन्त्रण दिया है। आपने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया है और भोजन के लिए पहुँच जाने का समय भी नियत कर दिया है। अब निमन्त्रण देने वाला अपने आवश्यक कार्यों को भी छोड़कर आपके लिए सारी तैयारियाँ करता है मगर आप में व्यावहारिक सत्य नहीं है, अतः आप समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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