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९६ / सत्य दर्शन वस्तु का स्वभाव ही धर्म :
धर्म-शास्त्र की वाणियाँ मनुष्य की सोई हुई वृत्तियों को जगाती हैं। किसी सोते हुए आदमी को जगाया जाता है, तो वह जगाना बाहर से नहीं डाला जाता है और जागने का भाव पैदा नहीं किया जाता है। इस प्रकार वह जाग भी गया, तो उसकी जागृति क्या खाक काम आएगी? ऐसे जगाने का कोई मूल्य भी नहीं है। शास्त्रीय अथवा दार्शनिक दृष्टि से उस जागने और जगाने का क्या महत्त्व है ? वास्तव में आवाज देने का अर्थ-सोई हुई चेतना को उबुद्ध कर देना ही है। सुप्त चेतना का उद्बोधन ही जागृति है।
यह जागृति क्या है ? कान में डाले गए शब्दों की भाँति जागृति भी क्या बाहर से डाली गई है ? नहीं । जागृति बाहर से नहीं डाली गई, जागने की वृत्ति तो अन्दर में ही. है। जब मनुष्य सोता होता है, तब भी वह छिपे तौर पर उसमें विद्यमान रहती है। स्वप्न में भी मनुष्य के भीतर निरन्तर चेतना दौड़ती रहती है और सूक्ष्म चेतना के रूप में 'अपना काम करती रहती है। इस प्रकार जब जागृति सदैव विद्यमान रहती है, तो समझ लेना होगा कि जागने का भाव बाहर से भीतर नहीं डाला गया है। सुषुप्ति ने पर्दे की तरह जागृति को आच्छादित कर लिया था । वह पर्दा हटा कि मनुष्य जाग उठा । ____ हमारे आचार्यों ने दार्शनिक दृष्टिकोण से कहा है कि मनुष्य अपने-आप में एक प्रेरणा है। मनुष्य की विशेषताएँ अपने-आप में अपना अस्तित्व रखती हैं। शास्त्र काया उपदेश का सहारा लेकर हम जीवन का सन्देश बाहर से प्राप्त नहीं करते, वरन् वासनाओं और दुर्बलताओं के कारण हमारी जो चेतना अन्दर छिप गई है, उसी को जागृत करते हैं।
__ हमारे यहाँ गुरु और शिष्य की बात चली, तो बतलाया गया है कि गुरु शिष्य के लिए क्या करता है ? एक आचार्य ने कहा कि गुरु का काम इतना है कि वह शिष्य की सोई हुई चेतना को जगा देता है। यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि शिष्य में चेतना विद्यमान है, इसी कारण तो वह उसे जगा सकता है। चेतना मूल में ही.न होती, तो गुरु किसे जगाता?
__ चिनगारी मौजूद है, उसमें अग्नि का तत्व विद्यमान है, तभी फूंक मारने से और उस पर घाँस-फूंस रखने से वह प्रज्वलित होती है। प्रज्वलित होकर वह दावानल का
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