SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 51 ) कालकाचार्य दया और क्षमा के भण्डार थे। किन्तु वे इस धर्म के पमान को न सह सके। उनकी नसों में वीर लहू उछलने लगा, उनके मुख र क्षात्र तेज चमक उठा और इस अत्याचार का बदला लेने को तैयार हो पए। __ घूमते हुए वे सिन्धु नदी के तट पर बसे हुए पार्श्वकुल नाम के देशों आ पहुँचे। वहाँ शक राजा राज्य करते थे। कालकाचार्य के कहने से शक जा अपनी सेना सहित उज्जैन पर चढ़ा और कालकाचार्य की चतुरता से दिभिल्ल को परास्त कर दिया। । कालकाचार्य को गर्दभिल्ल से कोई बैर नहीं था, उनको अत्याचार से बैर था। शक गर्दभिल्ल को मार डालना चाहते थे, किन्तु कालकाचार्य ने उसे जीवित छुड़वा दिया, केवल उसे राज्य से ही वंचित करवा दिया। कब उन्होंने साध्वी सरस्वती को उनके चंगुल से मुक्त कराया। बाद में जब शक राजा, प्रजा पर अत्याचार और अन्याय करने लगे, तब एक बार फिर कालकाचार्य का क्षत्रिय-रक्त प्रस्फुरित हो उठा और उन्होंने शकों को हराने में भारतीय जनता का नेतृत्व किया और सफल मार्ग-प्रदर्शन किया। इस कहानी का सारांश यह है, कि हमें धर्म की रक्षा के लिए सदा तैयार रहना चाहिए और अन्याय-अत्याचार को कभी भी सहन नहीं करना चाहिए। अभ्यास 1. कालकाचार्य कौन थे ? 2. गर्दभिल्ल ने क्या अत्याचार किया ? 3. धर्म-रक्षा के लिए क्या करना चाहिए ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003424
Book TitleJain Bal Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy