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________________ ( 50 ) उन दिनों उज्जैन का राजा गर्दभिल्ल था। वह, प्रजापीड़क, स्वार्थी और कामान्ध शासक था। एक बार उसने मार्ग में जाती हुई साध्वी सरस्वती को देख लिया। वह पापी राजा उसके रूप पर मोहित हो गया और उसने साध्वी सरस्वती को जबरदस्ती अपहरण करके अपने महलों में भिजवा दिया। यह समाचार नगर भर में बिजली की तरह फैल गया। इस घटना से सारे नगर में शोक छा गया। आखिर साध्वी को छुड़ाने के लिए नगर के कुछ मुख्य-मुख्य व्यक्ति राजा के पास गए, रोए, गिड़गिड़ाए। किन्तु, उस कामान्ध राजा ने एक न सुनी। उल्टा उन व्यक्तियों को अपमानित करके, बाहर निकाल दिया। बेचारे भेड़ों की तरह नीची गर्दन किए हुए चले आए। कालकाचार्य ने यह सब सुनी तो दंग रह गए। यदि एक साध्वी का अपहरण करने वाले को दण्ड देने की इनमें शक्ति नहीं थी, तो ये सब वह मर क्यों न गए ? इन्हें खाली हाथ लौट आने में लाज न आई ? यह एक सरस्वती की रक्षा का प्रश्न नहीं था। यह तो नारी जाति के गौरव का का प्रश्न था, धर्म की रक्षा का प्रश्न था। यह तो समूचे राष्ट्र और मान्य समाज का अपमान था। तब उन्होंने यह अपमान कैसे सह लिया। वे एक बार स्वयं गर्दभिल्ल को समझाने गए, किन्तु वह न माना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003424
Book TitleJain Bal Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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