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धारिणी ने यह सुना तो घबरा उठी। रानी ने देखा कि कामान्ध सैनिक छेड़-छाड़ करने पर उतारू है। अस्तु, रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जीभ खींचकर आत्म-हत्या कर ली। सैनिक ने रानी के मृत शरीर को वहीं जंगल में डाल दिया और चन्दनबाला को समझा-बुझाकर कौशाम्बी ले आया।
चन्दनवाला भी अपनी सतीत्व पर दृढ़ थी। दुष्ट-सैनिक जब इस ओर से निराश हो गया, तो बाजार में उसे बेचने ले गया। उस युग में पशुओं के समान स्त्री और पुरुष भी बाजार में बेचे जाते थे। इस नीच प्रथा का भगवान् महावीर ने केवल-ज्ञान होने के बाद बड़ा जबर्दस्त विरोध किया था।
जब वह सैनिक चन्दनबाला को बाजार में बेच रहा था, तब कौशाम्बी के नगर सेठ जैन-धर्मानुयायी धनावाह उधर आ निकले। उन्होंने एक भले घर की सुशील लड़की को बिकते देखा, तो व्याकुल हो गये। सैनिक को मुँह-माँगी कीमत देकर, चन्दनबाला को अपने घर ले आये। देखिए, प्राचीन काल में जैन लोग किस प्रकार दीन-दु:खी अबलाओं की सहायता किया करते थे।
सेठ की स्त्री का नाम मूला था। वह बड़ी निर्दय स्वभाव की थी। चन्दनबाला के रूप को देखकर हैरान रह गई। उसने सोचा कि “हो न हो, सेठ अपनी स्त्री बनाने के लिए ही इसे लाया है। मनुष्य का मन बड़ा चंचल होता है। जरूर कुछ दाल में काला है।"
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