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अहिंसा
एक अहिंसा ही, सच्चा सुखशान्ति दिला सकती है। हिंसा रत जनता, न एकपल को कल पा सकती है।।
द्वेष न कहीं, द्वेष के द्वारा, जीता जा सकता है ? कहीं आग द्वारा क्या कोई, आग बुझा सकता है ?
करो न औरों के प्रति वह जो, स्वयं न तुम्हें सुहाता। सबको अपने-सम समझे जो, वह सच्चा सुख पाता।।
व्यक्ति न कोई, घृणा योग्य है, करिए घृणा, घृणा से। हिंसा और क्रूरता को दो, बदल, दया-करुणा से।।
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