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________________ २२ : पीयूष घट सुकुमालिका अपनी अपमान भरी जिन्दगी से तंग आकर बहु श्रुता गोपालिका आर्या के पास दीक्षित हो गई। एक बार वह सुभूति बाग में तपस्या कर रही थी, वहाँ उसने देवदत्ता गणिका के साथ पाँच पुरुषों को देखा। प्रसुप्त वासना जाग उठी । संकल्प किया, मेरे तप का कोई फल हो, तो मुझे भी पाँच पुरुषों का संयोग मिले। मनुष्य अपनी साधना के अमत में विष घोलने का आदि देह त्याग कर वह देवी बनी । वहाँ से पंचाल देश के कांपिल्य नगर में द्रपद राजा की रानी चुलणी की पुत्री बनी। नाम था, द्रोपदी। धृष्टद्युम्न इसका भाई था। पिता ने स्वयंवर रचा, जिसमें अनेकों देशों के राजकुमार और राजा आए । द्रोपदी ने पाँच पाण्डवों के गले में पांच रंग को मालाएं डालकर उन्हें पति रूप से स्वीकार कर लिया। हस्तिनापुर में घमता-घूमता नारद आ पहुँचा । सबने उठकर सत्कारपूर्वक नमस्कार किया । परन्तु द्रौपदी ने नारद को असंयत और अविरत जानकर वन्दन नहीं किया । नारद ने बदले की मन में गांठ बांध ली। अपूर्ण मनुष्य , अपने अपमान को कभी भूलता नहीं है। आग लगाकर दूर खड़े तमाशा देखने वालों में नारद विख्यात है। वह धातकी खण्ड द्वीप में पूर्व के दक्षिणार्ध भरत की अपर कंका नगरी के राजा पद्मनाभि के पास जा पहुँचा। इनकी सात-सौ रानियाँ थीं। पुत्र एक ही था, नाम था सुनाम राजकुमार। नारद के मुख से द्रोपदी के रूप को प्रशंसा सुनकर राजा ने देव की सहायता से उसे अपने यहाँ मंगा लिया । पाण्डव हैरान Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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