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सुलसा की धर्म-परीक्षा !
सहजाने का संकल्में भगवान् के हजाया । एक
भगवान महावीर के युग में अम्बड, एक प्रसिद्ध सन्यासी था। वह भगवान के सिद्धान्तों से अत्यन्त प्रभावित था। एक बार उसने विचार किया : "राजगृह में भगवान् के हजारों-लाखों भक्त हैं। मैं राजगह जाने का संकल्प रखता हूँ। अपना यह संकल्प मैं भगवान् से व्यक्त करूं। देखें, भगवान् किसको अपना धर्म सन्देश देने को कहते हैं।" ___ अम्बड सन्यासी ने कहा : "भंते, मेरा राजगह जाने का विचार है । आपकी कोई सेवा हो, तो फर्माएँ !"
प्रभु ने शान्तभाव से कहा : "वहाँ मेरी एक भक्ता हैसुलसा । उसको 'दमस्व' कहना।" ___ अम्बड ने विचार किया : "इतने विशाल नगर में से केवल सुलसा का ही नाम क्यों लिया ! सुलसा की भक्ति की परीक्षा तो कर देख ?"
मार्ग में चलते अम्बड को विचार आया, "पुण्यशीला है. सुलसा, जिसको अरिहन्त भी याद करते हैं ।" सुलसा के घर पहुंच कर अम्बड सन्यासी ने अनेक प्रकार की परीक्षा की। परन्तु सुलसा की निष्ठा, श्रद्धा और भक्ति में कण भर भी अन्तर नहीं पड़ा । सन्यासी ने अनेक वैक्रिय रूप बनाकर सुलसा को अपनी शिष्या बनाने का प्रयत्न किया. परन्तु जरा भी सफलता नहीं मिली। सुलसा ने गुरु बुद्धि से नमस्कार भी नहीं किया।
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