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१४४ : पीयूष घट
एक बार देवयोग से मण्डित को मूलदेव मजदूर ही मिल गया। सिर पर गठरी उठाकर वह मण्डित के घर पहुँचा । गठरी अन्दर डाली और मण्डित चोर की रूपवती बहिन मजदूर के पैर हाथ धुलाने वाहर आयी । कूप के कोठे पर बैठ गयी। पैर धोने को तैयार हुयी, कि पैर में राज-चिन्ह देखकर चकित हुयो | रूप को रूप खींचता है । वह मुलदेव पर मुग्ध होकर बोली
"मैं आपको मारने के भाव से आयी थी, पर आप पर मेरा सहज स्नेह हो गया । मैं आपको अपना पति स्वीकार करती हूँ । मैं यह भी जानती हूँ, कि आप राजा हैं ।"
" परन्तु एक शर्त के साथ में आपको अपना पति बना सकती हूँ, और सारा धन वैभव भी दिखा सकती हूँ । यदि आप मेरे भाई मण्डित को न मारें, तो ।”
मूलदेव बुद्धिमान और धीर था। दूसरे रोज मण्डित को जुलाहे के रूप में पकड़ लिया । अपने सामने मण्डित चोर को खड़ा करके बोला
" मण्डित, मैं तुझे इस शर्त पर छोड़ सकता हूँ, कि तू अपनी बहिन का विवाह मेरे साथ कर दे । मैं तुझे अपने कोष का अध्यक्ष भी बना सकता हूँ ।"
मण्डित को यह बात पसन्द आ गयी । उसने अपनी बहिन का विवाह मूलदेव राजा के साथ कर दिया । वह राज्य कोष का
अध्यक्ष बना 1
कालान्तर में मूलदेव ने मण्डित से मधुर स्वर में कहा“अब तुम्हें धन की क्या कमी है। प्रजा का धन लोटा दो ।" मण्डित ने धीरे-धीरे सबका धन लौटा दिया। एक रोज अवसर देखकर राजा ने मण्डित को शूली पर चढ़ा दिया । प्रजा अब
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