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________________ मण्डित चोर यह शरीर संयम-साधना में जब तक सक्षम और स्वस्थ है, तब तक इसका पालन-पोषण तथा संरक्षण करना आवश्यक है। परन्तु यह सब जीर्ण-शीर्ण हो जाए, तब तप करके आत्मकल्याण में उसे सफल करना चाहिए। प्राचीन समय में बेनातट नगर में मूलदेव नाम का एक राजा था, वह अपनी प्रजा का स्नेह से पालन करता था । प्रजा का कष्ट राजा का अपना कष्ट होता है। उसी नगर में एक मण्डित चोर भी रहता था। दिन में वह अपने पैर में पट्टी बाँधकर जुलाहे का रूप बनाकर नगर के बाजारों में, गलियों में और मुहल्लों में चोरी का दाव देखता फिरता रहता था। उसके घर में एक भूमि-गृह था, जिसमें लूट का और चोरी का अपार धन भरा पड़ा था, जिसकी रक्षा उसकी रूपवती बहिन किया करती थी। भाई चोर था और वहिन रखवालिन थी। मण्डित चोर ज्यों ही मजदूर के सिर पर धन की पोट धरवाकर लाता, बहिन त्यों हो मजदूर के पैर-हाथ धोने के बहाने उसे कूप में धकेल देती। ___ मूलदेव राजा ने प्रजा के दुखः को देखकर मण्डित चोर को पकड़ने का दृढ़ संकल्प कर लिया। मनुष्य क्या नहीं कर सकता? यदि वह करना धार ले, तो। मूलदेव मजदूर का वेष बनाकर रात को नगर भर में घूमता-फिरता रहता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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