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________________ मरते तो सौ-दो सौ ही हैं । मरने वाले तो अपनी किस्मत से मरते हैं, उनका डाक्टर क्या करे ? जो वच जाते हैं, वे डाक्टर की दवा से बचते हैं। आने वाले हजार में अगर नौ सौ बचे, तो यह मान लिया जाता है-डाक्टर ने सौ को मरने दिया, परन्तु नौ सौ को तो बचा लिया।" अन्धे की क्षमा का प्रभाव आने - जाने बाले आदमियों का क्या ठिकाना? बाजार में बड़ी ही भीड़ थी । एक आदमी का पैर भीड्र में कुचला गया। बस, वह आवेश में आ गया और उसने कुचलने वाले के मुंह पर एक जोर का थप्पड़ जड़ दिया-'अंधे दिखता नहीं ?' थप्पड़ खाने वाले ने हाथ जोड़ कर बहुत नम्रता से कहा--- "महाशय ! आपको यह जान कर दुःख होगा कि मैं अन्धा हूँ।" थप्पड़ मारने वाला तो पानी - पानी हो गया । अंधे के पैरों में गिर कर वह क्षमा माँगने लगा। यह है, शान्ति रखने का विलक्षण प्रभाव। STA NEW NITY ५४ सागर के मोती: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003422
Book TitleSagar ke Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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