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सही-सम्यक् - दिशा दर्शन हेतु, आपके अध्ययन एवं चिन्तन के लिए आपके कर - कमलों में अर्पित हैं ।
साध्वीरत्न परम विदुषी महासती श्री सुमतिकुवरजी महाराज का १९८६ में महाराष्ट्र में स्थानकवासी समाज के प्रमुख क्षेत्र घोड़नदी (पूना) में वर्षावास हुआ। परम श्रद्धय महासतीजी की सत्प्रेरणा से प्रस्तुत वर्षावास में जैन समाज में, विशेष रूप से युवा - मानस में नव - चेतना का संचार हआ। युवक-युवती, बालक - बालिका और साथ ही वयोवद्ध मानस में भी एक ऐसी ज्योति जगी है कि आध्यात्मिक, धार्मिक अध्ययन, जन - सेवा एवं समाज-सुधार के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य इस वर्षावास में हुए हैं। ध्यानशिविर, आध्यात्मिक विचार - गोष्ठियाँ, धार्मिक अध्ययन के क्लास, कन्यागुरुकुल की योजना आदि उल्लेखनीय कार्य हैं। उन्हीं में से प्रस्तुत पुस्तकप्रकाशन का विचार उदित हुआ और क्रियान्वित भी।
आप स्वयं अनुभव करें कि शब्द-शरोर के ज्ञान-कोष से पूज्य गुरुदेव आपके समक्ष उपस्थित हैं । और, उस ज्योति - स्तंभ में आप अपने जीवन के हर मोड़ पर सम्यक् दिशा - दर्शन एवं दिव्य प्रेरणा पाएंगे।
___ साध्वी श्री शुभम्जी, पूज्य महासतीजी को एक सुयोग्य प्रशिष्या है। उनके सद्-प्रयास से यह द्वितीय संस्करुण आपकी सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। आप अपने उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में प्रेरणा प्राप्त करें और आगे बढ़ें, इसी शुभाशंसा के साथ ।
-दर्शनाचार्य साध्वी चन्दना
वीरायतन, राजगृह
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