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सर्प को आत्म बोध - मिला। वह अपनी भूलों पर पश्चात्ताप रता हुआ बिल में घुस गया। उस दिन से साँप ने किसी को काटा नहीं, न किसी को मारा। वह सताया भी गया, फिर भी शान्त ही रहा और अमृतभाव की उपासना में लगा रहा !
यह सन्त भगवान् महावीर थे। इनका मिशन था, विष के बदले में भी अमृत बांटना । जिसके अन्दर जहर न हो, उसके लिए दुनिया मे कहीं भी जहर नहीं है ।
यह कथानक विराट् आत्म शक्ति का एक छोटा-सा निदर्शन है ।
को रुक् ?
उपनिषद् में एक कथा आती है, जिसमें एक जिज्ञासु किसी तत्त्ववेत्ता ऋषि से पूछता है - "कोऽरुक् ? नीरोगी कौन है ? विचारक ऋषि ने अभक्ष्य, अशुद्ध तथा अधिक खाने की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहा- "हितभुक्, मितभुक् ।”
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ऋषि के उत्तर का भावार्थ यह है कि जो पथ्य खाने वाला है और कम खाने वाला है, वह नीरोगी है, स्वस्थ है | हिन्दी का देहाती कवि घाघ भी कहता है :
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" रहै नीरोगी जो कम खाय, विगरै काम न, जो गम खाय !”
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सागर के मोती
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