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चारित्र आत्मा चारित्र; अर्थात् अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति । चारित्रयुक्त आत्मा को चारित्र आत्मा कहते हैं । यह आत्मा विरति-सम्पन्न जीवों में होता है ।
वीर्य आत्मा वीर्य; अर्थात् जीव की शक्ति विशेष । वीर्ययुक्त आत्मा को वीर्य आत्मा कहते हैं । यह आत्मा सभी जीवों में होती है । अन्तर केवल इतना ही है कि संसारी आत्माओं का वीर्य सकरण; अर्थात् क्रिया रूप है और सिद्ध आत्माओं का वीर्य मात्र लब्धि; अर्थात् शक्ति रूप वीर्य है ।
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