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________________ कषाय आत्मा—कषाय चार हैं. क्रोध, मान, माया और लोभ । कषाय युक्त आत्मा को कषाय आत्मा कहा है । उपशान्त मोह और क्षीण मोह आत्माओं को छोड़कर शेष समस्त संसारी जीवों में यह आत्मा होती योग आत्मा—योग मन, वचन एवं काय का व्यापार है । योग युक्त आत्मा को योग आत्मा कहते हैं । अयोगी केवली और सिद्धों में यह आत्मा नहीं होती । शेष सभी जीव योग वाले हैं । उपयोग आत्मा–उपयोग; अर्थात् ज्ञान और दर्शन । उपयोगयुक्त आत्मा को उपयोग आत्मा कहते हैं । उपयोग आत्मा सिद्ध और संसारी सभी जीवों में होती है । क्योंकि उपयोग आत्मा का लक्षण है । अतः उपयोग शून्य कोई आत्मा नहीं हो सकती । ज्ञान आत्मा–ज्ञान आत्मा का निज गुण है, ज्ञान-युक्त आत्मा को ज्ञान आत्मा कहते हैं । यह आत्मा सभी जीवों में है । परन्तु जब ज्ञान का अर्थ सम्यग्ज्ञान करें, तब यह आत्मा केवल सम्यगदृष्टि जीवों में रहेगी । क्योंकि मिथ्या दृष्टि में ज्ञान नहीं, अज्ञान होता है । दर्शन आत्मा–दर्शन; अर्थात् सामान्य बोध । दर्शनयुक्त आत्मा को दर्शन आत्मा कहते हैं । यह आत्मा सभी जीवों में होती है । अथवा सम्यग्दर्शन रूप आत्मा सम्यग्दृष्टि जीवों में ही होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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