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________________ बोल पहला गति चार - १. नरक गति ३. मनुष्य गति २. तिर्यञ्च गति ४. देव गति - ( व्याख्या) संसार में अनन्त जीव हैं । साधारण व्यक्ति के लिए सबको जानना और वर्णन कर सकना सम्भव नहीं है । केवली-भगवान ही अपने अनन्त ज्ञान से अनन्त जीवों को जान-देख सकते हैं । अल्पज्ञ जीव में वैसा सामर्थ्य नहीं है, कि वह समस्त जीवों को जान सके । क्योंकि अल्पज्ञ जीव के पास ज्ञान का साधन है-इन्द्रिय । इन्द्रियों द्वारा सूक्ष्म और अतीन्द्रिय पदार्थों को जाना नहीं जा सकता । फिर, एक अल्पज्ञ आत्मा जीवों का परिज्ञान कैसे करे ? शास्त्रकार ने इसी प्रश्न के समाधान के लिए अनन्त जीवों को चार विभागों में वर्गीकरण कर दिया है । संसार के समग्र जीव इसमें समाहित हो जाते हैं । संसारस्थ एक भी जीव ऐसा नहीं रहता जो इस बोल में न आ जाता हो । लोक-भाषा में गति का अर्थ है-गमन, चलना - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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