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है । पापस्थानों के सेवन से जीव नीच गति में जाता है । इनके त्याग से जीव उच्च गति प्राप्त करता है । पाप हेय ही होता है, कभी उपादेय नहीं होता । __ पाप तत्त्व के अठारह भेद पाप बन्ध के कारण हैं । कारण में कार्य का उपचार मानकर ही पापतत्त्व के भेद बताए गये हैं ।
आस्रव तत्त्व के बीस भेद
पाँच अव्रत १. प्राणातिपात
२. मृषावाद ३. अदत्तादान
४. मैथुन ५. परिग्रह
पाँच इन्द्रिय १. श्रोत्रेन्द्रिय प्रवृत्ति २. चक्षुरिन्द्रिय प्रवृत्ति ३. घ्राणेन्द्रिय प्रवृत्ति ४.. रसनेन्द्रिय प्रवृत्ति ५. स्पर्शनेन्द्रिय प्रवृत्ति
पाँच आस्रव १. मिथ्यात्व आस्रव २. अविरति आस्रव ३. प्रमाद आस्रव ४. कषाय आस्रव ५. अशुभ योग आस्रव
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