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________________ १०. राग ११. द्वेष १२. कलह १३. अभ्याख्यान (झूठा कलंक लगाना) १४. पैशुन्य ( दूसरे की चुगली करना) ( अवर्णवाद, निन्दा) १५. पर - परिवाद १६. रति - अरति (मनोज्ञ शब्दादि पर प्रीति, आकर्षण और अमनोज्ञ पर अप्रीति, अरुचि ) १७. माया - मृषा १८. मिथ्यादर्शन शल्य ( मनोज्ञ वस्तु पर स्नेह ) ( अमनोज्ञ वस्तु पर द्वेष ) ( क्लेश, झगड़ा ) ( कपटसहित मिथ्या भाषण) ( कुदेव, कुगुरु, और कुधर्म पर श्रद्धा) Jain Education International व्याख्या हिंसा असत्य आदि अशुभ योग से बँधने वाले अशुभ कर्म को पाप कहते हैं । क्योंकि वह आत्मा को मलिन बनाता है । पाप के उदय से जीव को दुःख और पीड़ा मिलती है । पाप बाँधते समय सुखकर, किन्तु भोगते समय दुःखकर प्रतीत होता है । अठारह प्रकार से पाप बाँधा जाता है और ज्ञानावरण, दर्शनावरण, असातावेदनीय, मोहनीय, नरक गति, तिर्यञ्चगति अशुभ वर्ण आदि ८२ प्रकार से भोगा जाता ( ५० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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