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बोल सातवा
शरीर पाँच
१. औदारिक शरीर २. वैक्रियिक शरीर ३. आहारक शरीर ४. तैजस शरीर ५. कार्मण शरीर
= व्याख्या आत्मा जिसके द्वारा पूर्वबद्ध कर्मों को भोगता है उसे शरीर कहते हैं । 'भोगायतनं शरीरम्'; अर्थात् शरी भोग का आयतन है, स्थान है । ___ संसार अवस्था में उपर्युक्त पाँच शरीरों में से मनु तथा तिर्यञ्च को तीन मूल शरीर अवश्य ही होते हैं
औदारिक, तैजस कार्मण देव तथा नारकों को तीन मूर शरीर होते हैं—वैक्रियिक, तैजस, कार्मण । मनुष्य के साधना के बल से आहारक और वैक्रियिक भी हो सकते हैं । तिर्यञ्च को साधना से वैक्रियिक हो सकता है आहारक नहीं । एक जन्म से दूसरे जन्म को ग्रहण करते समय अन्तराल गति में केवल तैजस और कार्मण शरीर रहते हैं । क्योंकि बिना शरीर के जन्म और मरण कैसे हो सकता है । __ औदारिक शरीर-उदार (स्थूल) पुद्गलों से बना
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