SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + नामक विशेष तप किया जाता है, उसे परिहार विशुद्धि चारित्र कहते हैं । परिहार तप से आत्मा की विशेष शुद्धि होती है । परिहार; अर्थात् संघ से पृथक् होकर विशिष्ट तपस्या से आत्मा की शुद्धि करना, परिहार विशुद्धि है । परिहार नामक तप की विधि संक्षेप में इस प्रकार " नौ साधुओं का गण परिहार तप प्रारम्भ करता है । इनमें से चार तप करते हैं और चार उनकी 李 वैयावृत्य (सेवा) करते हैं तथा एक उनके गुरु ( निर्देशक ) के रूप में रहता है । " पहले चार साधु छः मास तक उपवास, बेला, तेला, चौला, पचौला तथा आयंबिल आदि तप करते हैं । फिर सेवा करने वाले छह मास तक तप करते हैं और तप करने वाले सेवा करते हैं । फिर गुरु पद पर रहा हुआ साधु भी छह मास तक तप करता है । इस प्रकार अठारह मास में इस परिहार तप का कल्प पूर्ण होता है । सूक्ष्म सम्पराय चारित्र - सम्पराय का अर्थ कषाय होता है । कषाय चार हैं – क्रोध, मान, माया और लोभ । परन्तु इस चारित्र में केवल सूक्ष्म संज्वलन रूप लाभ कषाय ही शेष रह जाता है । अतः इसको सूक्ष्म सम्पराय Jain Education International ( ६५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy