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हिन्दी-सूक्त
जहाँ काम तहँ राम नहिं, जहाँ राम नहिं काम । दोनों कबहूँ ना मिलें, रवि रजनी इक ठाम ।। काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खान । तब लगि पंडित मूर्ख हू, दोनों एक समान ॥ सोलवंत सबसे बड़ा, सब रतनन की खानि । तीन लोक को सम्पदा, रही सील में आनि । ज्ञानी ध्यानी संयमी, दाता सूर अनेक । जपिया तपिया बहुत हैं, सीलवंत कोई एक ॥ सुख का सागर सोल है, कोई न पावै थाह । सब्द बिना साधू नहीं, द्रव्य बिना नहिं साह । सील छिमा जब ऊपजे, अलख दृष्टि तब होय । बिना सील पहुँचै नहि, लाख कर्थ जो कोय ॥
-कबीर काम क्रोध मद लोभ सब, प्रबल मोह की धार । तिनमहं अति दारुण दुखद, मायारूपी नार ॥
वासना का वार निर्मम, आशाहीन, आधारहीन प्राणियों पर ही होता है । चोर की अँधेरे में ही चलती है, उजाले में नहीं।
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