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ब्रह्मचर्य दर्शन राग के कारण उच्छ हल चित्त के लिए धर्य धारण करना वैसे ही दुष्कर है, जैसे कि दूषित (गन्दे) जल को भी देख कर प्यासे पथिक के लिए धैर्य रखना कठिन है।
शीलमास्थाय वर्तन्ते, सर्वा हि श्रेयसि क्रियाः । स्थानाद्यानीव कार्याणि, प्रतिष्ठाय वसुन्धराम् ।।
--सौन्दरनन्द काव्य १३,२१ शील के आश्रय से सभी श्रेयस्कर कार्य सम्पन्न होते हैं, जैसे पृथ्वी के आधार से खड़ा होने आदि कार्य होते हैं।
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