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________________ २१४ ब्रह्मचर्य-दर्शन साथ हँसता है, न आंख से आँख को मिलाकर देखता है, न स्त्री का शब्द सुनता है और न. पहले कभी किए हुए स्त्रो के साथ हँसी मजाक का स्मरण ही करता है, किन्तु पाँच काम - गुणों में समर्पित, तल्लीन और उनमें आनन्द लेते हुए गृह पति अथवा गृहपति के पुत्र को देखता है और उसका मजा लेता है । हे ब्राह्मण ! यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है और शबल होना भी है । ७. ब्राह्मण ! यदि कोई श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ, न स्त्री के साथ ठहाका मारकर हँसता है, न अपनी आँख से स्त्री की आँख को मिलाकर देखता है, न स्त्री का शब्द सुनता है, न पहले कभी स्त्री के साथ किए हुए हंसी-मजाक का स्मरण करता है और न पाँच कामगुणों में समर्पित एवं तल्लीन हुए गृहपति अथवा उसके पुत्र को ही देखता है, किन्तु वह किसी देव -निकाय की इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करता है और मन में संकल्प करता है, कि मैं इस शील, व्रत, तप अथवा ब्रह्मचर्य से देवता बनूंगा । वह इस प्रकार संकल्प ही नहीं करता, बल्कि इस संकल्प का मजा भी लेता है तो ब्राह्मण ! यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है और शबल होना भी है। इस प्रकार का साधक अपने जन्म, जरा और मरण के संक्लेशों से कभी विमुक्त नहीं हो सकता, कभी छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता । भगवान बुद्ध ने ब्रह्मचर्य एवं शील के संरक्षण के सम्बन्ध में जो सात बातें बतलाई हैं, वे प्रायः भगवान महावीर के द्वारा उपदिष्ट दश समाधिं एवं गुप्ति तथा नव बाड़ का ही अनुसरण है । बुद्ध ने अपने भिक्षुओं के लिए शील-रक्षा का यह ज़ो मनोवैज्ञानिक उपाय बतलाया है, वह वस्तुतः एक सुन्दर उपाय है, एवं ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए एक सुन्दर साधन है । जब तक ब्रह्मचयं की एवं शील की संरक्षा के लिए इस प्रकार के उपायों का अवलम्बन न लिया जाएगा, तब तक ब्रह्मचर्य का पालन सहज नहीं बन सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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