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________________ संक्लेश और विशुद्धि २१३ उसमें और अधिक अभिवृद्धि होती है। मैथुन के दोषों से बचने के लिए एक ब्राह्मण को, भगवान बुद्ध ने सांत प्रकार के उपाय बतलाए थे, जो इस प्रकार हैं १. ब्राह्मण ! यदि कोई श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ भी किसी स्त्री के साथ तो मैथुन-सेवन नहीं करता, किन्तु स्त्री से उबटन लगवाता है, शरीर मलवाता है, स्नान करवाता है और शरीर दबवाता है। वह उसका मजा लेता है, उसको पसन्द करता है और उसे देखकर प्रसन्न होता है । ब्राह्मण ! यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है और शबल (चितकबरा होना) भी है । वह व्यक्ति मैथुन-संयोग से संयुक्त है, वह जन्म, जरा एवं मृत्यु से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। २. ब्राह्मण ! यदि श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ, स्त्री के साथ मैथुन-सेवन नहीं करता और न उबटन ही लगवाता है, किन्तु स्त्री के साथ ठहाका मारकर हँसता है, उसके साथ मजाक करता है, मजाक करते हुए विचरना है और वह उसका मजा लेता है । यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है, और शबल होना भी है । वह अपने जन्म-मरण से नहीं छूट सकता। ३. ब्राह्मण ! यदि कोई श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ स्त्री के साथ मैथुन-सेवन नहीं करता, न स्त्री से उबटन लगवाता है, न ठहाका मार कर हँसता है, न मजाक करता है, न मजाक करते विचरता है, किन्तु अपनी आँख से स्त्री की आँख मिलाकर देखता है, अवलोकन करता है और उसका मजा लेता है। यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है और शबल होना भी है। ४. ब्राह्मण ! यदि कोई श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ, न स्त्री के साथ मैथुन सेवन करता है, न स्त्री से उबटन लगवाता है, न उसके साथ हँसता है और न अपनी आँख से स्त्री की आँख को मिलाकर देखता है, किन्तु भीत की आड़ से चारदीवारी की ओट से हँसती हुई, बोलती हुई, गाती हुई या रोती हुई स्त्री का शब्द सुनता है और उसका मजा लेता है । ब्राह्मण ! यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है और शबल होना भी है। ५. ब्राह्मण ! यदि कोई श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ, न स्त्री के साथ हँसता है, न अपनी आँख से स्त्री की आँख को मिलाकर देखता है और न स्त्री का शब्द सुनता है, किन्तु उसने पहले स्त्री के साथ जो हँसी मजाक किया उसे याद करता है और उसका मजा लेता है । ब्राह्मण ! यह ब्रह्मचर्य का खण्ड भी है, छेद भी है और शबल होना भी है। ६. ब्राह्मण ! यदि कोई श्रमण या ब्राह्मण पक्का ब्रह्मचारी होने का दावा करता हुआ, न स्त्री के साथ मैथुन-सेवन करता है, न उबटन लगवाता है, न स्त्री के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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