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संकल्प शक्ति : ध्यान-योग
मन का विकल्प उसे हवा में तिनके की भांति इधर-उधर लक्ष्यहीन भटकाता है और मनुष्य के मन का संकल्प उसे स्वीकृत लक्ष्य पर गिरिराज सुमेरु की भाँति स्थिर रखता है । अतः मनुष्य को अपने मन का विकल्प दूर करना चाहिए और अपने संकल्प को अधिक सुदृढ बनाना चाहिए। संकल्प ही जीवन की शक्ति है और संकल्प ही जीवन का बल है । ब्रह्मचर्य की साधना में पूर्णता प्राप्त करने के लिए भी साधक को अपनी इसी अन्तःप्रमुप्त संकल्प-शक्ति को प्रबुद्ध करना होगा, तभी वह ब्रह्मचर्य की साधना में सफल हो सकेगा ।
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वरं प्रवेश ज्वलितं हुताशनं,
न चापि भग्नं चिरसञ्चितव्रतम् । वरं हि मृत्युः सुविशुद्धचेतसो,
न चापि शीलस्खलितस्य जीवितम् ।। - उत्तरा० ( कमलसंयमी टीका )
जलती आग में प्रवेश करना अच्छा है, पर अंगीकृत शील व्रत को तोड़ना अच्छा नहीं है । संयम में रहते मृत्यु भी अच्छी, पर शील-रहित होकर जीना अच्छा नहीं है ।
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