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________________ १६५ संकल्प-शक्ति : ध्यान योग भी उसे अंकुरित, पुष्पित और फलित नहीं कर सकता । उस बीज के भाग्य में मिट्टी में मिलने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी शेष नहीं रहता । उसके जीवन का उपयोग और प्रयोग जन-जीवन के लिए शून्य से अधिक कुछ महत्व नहीं रखता । इस प्रकार का जीवन, जिसमें संकल्प, इच्छा और बल नहीं रहता, वह संसार के कल्याण के लिए और विकास के लिए क्या योग-दान कर सकता है ? ब्रह्मचर्य की शक्ति से ही साधक के जीवन में वह संकल्पशक्ति और इच्छा-शक्ति प्रस्फुटित होती है, जिससे उसके जीवन में चमक और दमक आ जाती है । जो व्यक्ति जितनी अधिक तीव्रता के साथ ब्रह्मचर्य व्रत का परिपालन करता है, उसकी संकल्प-शक्ति और इच्छा-शक्ति उतनी ही अधिक विशाल और विराट बन जाती है । एक ध्यान-योगी अपनी ध्यान-योग की साधना के द्वारा जिस ध्येय को प्राप्त करना चाहता है, एक ज्ञान-योगी अपने ज्ञान-योग की साधना के द्वारा जिस लक्ष्य पर पहुँचना चाहता है, और एक वैज्ञानिक अपने प्रयोग की जिस साधना के द्वारा अपनी मंजिल पर पहुंचना चाहता है, वह वस्तुतः है क्या ? वह संकल्प की ध्र वता, मन की एकाग्रता, चित्त की एकनिष्ठता और विचार की तन्मयता के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । मनुष्य को जो कुछ पाना है, वह अपने अन्दर से ही पाना है; कहीं बाहर से नहीं । ब्रह्मचर्य की साधना से जिसका मन एकाग्र हो जाता है, उस व्यक्ति के लिए विश्व का गहन से गहनतर रहस्य भी प्रकट हो जाता है। ब्रह्मचर्य की महिमा अपार है एवं अगाध है ।। मनुष्य के जीवन को दो विभागों में विभक्त किया जा सकता है-मर्त्य और अमृत, दिव्य और पार्थिव । जो व्यक्ति अपने जीवन के मर्त्य और पार्थिव भाग का चिन्तन करते हैं, उसी में विश्वास करते हैं, वे अपने अमृत और दिव्य भाग को भूल जाते हैं । वस्तुतः यही उनकी आत्म-हीनता और आत्म-दीनता का कारण है। इससे मनुष्य में कुछ भी करने की योग्यता और क्षमता विलुप्त हो जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को जो अपने जीवन में किसी भी प्रकार की साधना करना चाहता है, उसे यह सोचना चाहिए कि मैं जड़ नहीं, चेतन हूँ। मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ । मैं सान्त नहीं हूँ, अनन्त शक्ति का पुंज हूँ। संसार के इन तुच्छ बन्धनों में बद्ध रहना मेरा स्वभाव नहीं है । यह संकल्प-शक्ति जिसके घट में प्रकट हो जाती है, वह कभी भी और किसी भी प्रकार के बन्धन से बद्ध नहीं हो सकता । वह संसार के माया-जाल में फंसा नहीं रह सकता । सोने वाला एक प्रकार से मृत है, वह क्या प्राप्त कर सकेगा ? अपने को खोकर किसने क्या प्राप्त किया है ? जो जागता है, वही सब कुछ प्राप्त कर सकता है। अपने चरित्र के निर्माण एवं विकास के लिए, प्रत्येक मनुष्य को अपना कोई भी एक ध्येय निश्चित करके अपनी समग्रशक्ति को उसी पर केन्द्रित कर देना चाहिए । इससे बढ़कर सफलता का अन्य कोई मन्त्र नहीं हो सकता। क्योंकि विचारों में अस्थिरता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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