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________________ १८२ ब्रह्मचर्य र्शन सुखबीजं सदाचारो वैभवस्यापि साधनम् । कदाचारप्रसक्तिस्तु विपदां जन्मदायिनी ॥ -कुरल सदाचार-परिच्छेदः १४,८ सदाचार सुख-सम्पत्ति का बीज बोता है, परन्तु दुष्ट-प्रवृत्ति असीम आपत्तियों की जननी है। इन्द्रियाणां जयो यस्य कर्तव्येषु च शूरता । पर्वतादधिकस्तस्य प्रभावो वर्तते भुवि ।। -कुरल, संयम-परिच्छेदः १३,४ जिसने अपनी समस्त ऐन्द्रियक इच्छाओं को जीत लिया है और जो कभी अपने कर्तव्य से पराङ्ग मुख नहीं होता, उसका व्यक्तित्व पर्वत से भी बड़कर प्रभाव. शाली होता है। कोऽर्थस्तस्य महत्वेन रमते यः परस्त्रियाम् । व्याभिचारात् समुत्पन्ना लज्जा येन चहेलिता ।। -कुरल, परस्त्री-त्याग परिच्छेद १५,४ मनुष्य चाहे कितना ही श्रेष्ठ क्यों न हो, पर, उसकी श्रेष्ठता किस काम की, जबकि वह व्याभिचारजन्य लज्जा का कुछ भी विचार न कर परस्त्री-गमन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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