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माध्यात्मिक ब्रह्मचर्य
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के लिए उन पर दबाव डाला, पर उन्होंने इस बात के लिए स्पष्ट इन्कार कर दिया
और कहा कि-"मेरी साधना में जो एक विघ्न था, वह भी भगवान की इच्छा से स्वतः ही दूर हो गया। जब मैं एक बार बन्धन-मुक्त हो गया हूँ, तब फिर दुबारा बन्धन में क्यों फैसू ?" निश्चय ही राजबाड़े का जीवन सरस, शान्त, शीतल एवं प्रकाशमय था। उनके जीवन के इस संयम के कारण ही, उनकी धारणा-शक्ति अपूर्व थी। किसी भी शास्त्र में उनकी बुद्धि रुकती नहीं थी। यह बौद्धिक बल उन्हें ब्रह्मचर्य से प्राप्त हुआ था।
स्वामी विवेकानन्द का नाम कौन नहीं जानता? विवेकानन्द के जीवन में जो एकाग्रता, एकनिष्ठता और तन्मयता थी, वह किसी दूसरे पुरुष में देखने को नहीं मिलती । उनकी प्रतिभा एवं मेधा-शक्ति के चमत्कार के विषय में कहा जाता है कि वे जब किसी ग्रन्थ का अध्ययन करने बैठते थे, तब एक आसन पर एक साथ ही अध्याय के अध्याय पढ़ लेते थे और किसी के पूछने पर वे उन्हें ज्यों का त्यों सुना भी सकते थे। उनकी स्मरण-शक्ति अद्भुत थी। कोई भी विषय ऐसा नहीं था, जिसे वे आसानी से न समझ सकते हों। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे कि ब्रह्मचर्य के बल से सारी बातें साधी जा सकती हैं।
आधुनिक युग के अध्यात्म योगी साधक श्रीमद् रायचन्द से सभी परिचित हैं। उनमें शताधिक अवधान करने की क्षमता एवं योग्यता थी। जिस भाषा का उन्होंने अध्ययन नहीं किया था, उस भाषा के कठिन से कठिन शब्दों को भी वे आसानी से हृदयंगम कर लेते थे । यह उनके ब्रह्मचर्य योग की साधना का ही शुभ परिणाम है। उन्होंने ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में अपने एक अन्य में कहा है कि
निरखी ने नव यौवना, लेश न विषय निदान ।
गणे काष्ठ नी पूतली, ते भगवंत समान । ब्रह्मचर्य की इससे अधिक परिभाषा एवं व्याख्या नहीं की जा सकती, जो ब्रह्मचर्य-योगी श्रीमद् रामचन्द ने अपने इस एक दोहे में करदी है।
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