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________________ ब्रह्मचर्य-दर्शन टेन्सले जो कि मनोविज्ञान का एक महान पण्डित था, उसका कथन है कि मनुष्य के जीवन की मार्मिक घटनाओं का मुख्य कारण काम-वासना का दमन ही है। जब मनुष्य की कामेच्छा की पूर्ति में किसी प्रकार की रुकावट पैदा हो जाती है, तब उसके जीवन में अन्तर्द्वन्द्व पैदा हो जाते हैं । फ्रायड का कथन भी यह है कि काम वासना के अनुचित दमन के कारण ही, मनुष्य के वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन में संघर्ष उत्पन्न हो जाते हैं । परन्तु यदि मनुष्य अपनी काम-वासना का संशोधन करले, रूपान्तर करले, अथवा उसकी शक्ति को किसी उच्चकोटि के कार्य में संलग्न करदे, तो उसके जीवन का समुचित विकास भी हो सकता है । काम-वासना का विश्लेषण : मनोविज्ञान के पण्डितों ने काम-वासना का विश्लेषण करते हुए, इसके तीन रूपों का कथन किया है १. सम्भोग की इच्छा, जो पुरुष में स्त्री के प्रति और स्त्री में पुरुष के प्रति होती है । यह काम-वासना का पहला रूप है । २. मानसिक संयोग, जो स्त्री-पुरुष में एक दूसरे के प्रति आकर्षण के रूप में, प्रेम प्रकाशन के रूप में एवं अन्य वार्तालाप आदि करने की इच्छा के रूप में, प्रकट होता है । यह काम-वासना का दूसरा रूप है। ३. सन्तान के प्रति प्रेम तथा रक्षा के भाव में दाम्पत्य जीवन की पूर्ति देखी जाती है। क्योंकि सन्तान-उत्पत्ति स्त्री एवं पुरुष के मानसिक और शारीरिक मिलन का परिणाम है । यह तीसरा रूप है। साधारणतया काम-वासना के यह तीनों अङ्ग एक साथ ही उपलब्ध हो जाते हैं । मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में इन तीनों की उपस्थिति रहती है। पुरुष जिस स्त्री को प्यार करता है, वह उसके साथ विवाह करने की भी अभिलाषा करता है और विवाह के अनन्तर सन्तान-उत्पत्ति होने पर, उसके पालन-पोषण और रक्षा का भार भी अपने ऊपर लेता है । यह भी देखा जाता है कि कभी किसी व्यक्ति विशेष के जीवन में, काम-वासना के इन तीनों अंगों में से किसी एक ही अंग की अधिकता रहती है। जैसे कि किसी व्यक्ति में भोग-विलास की इच्छा अत्यधिक बढ़ सकती है, उस स्थिति में काम-वासना के दूसरे अङ्ग निर्बल पड़ जाते हैं। काम-शक्ति का रूपान्तर: मनोविज्ञान के पण्डितों का यह विचार है कि प्रत्येक मनुष्य अपने चित्त के विश्लेषण से अपनी काम शक्ति का रूपान्तर भी कर सकता है। उसे ह्रास की ओर न ले जाकर विकास की ओर भी ले जा सकता है। मनुष्य के मन में वह अद्भुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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