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________________ मनोविज्ञान : ब्रह्मचर्य १५५ व्यक्ति को अपने जीवन में, ठीक ढंग से व्यावहारिक कार्यों को करने के लिए चेतन मन की आवश्यकता होती है । अचेतन मन हमारे पुराने अनुभवों की महानिधि के समान है। मनुष्य को जन्मजात प्रवृत्तियाँ अचेतन मन में ही रहती हैं। विस्मृत अनुभव और अतृप्त वासनाएं भी, अचेतन मन में ही रहती हैं । अचेतन मन क्रियात्मक मनोवृत्तियों का उद्गम-स्थल है। चेतन और अचेतन मन का सम्बन्ध कभी-कभी नाट्यशाला की रंगभूमि और उसके पिछले भाग से तुलना करके बताया जाता है । जसे रंगमंच पर आने वाले पात्र, रंगमंच पर न आने वाले पात्रों की तुलना में अल्प रहते हैं, वैसे ही मनुष्य के चेतन मन में आने वाली वासनाएँ न आने वाली वासनाओं का एक अल्प भाग हो होता है । जिस प्रकार बिना रंगमंच पर जाए, कोई भी पात्र अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर सकता, उसी प्रकार मन की कोई भी वासना अचेतन मन से चेतन मन में आए बिना प्रकट नहीं हो सकती । कोई भी विचार या वासना, चेतन मन में आने से पूर्व रंगभूमि के सजे हुए पात्रों के सदृश मन के पर्दे के पीछे ठहरे रहते हैं । मन का वह भाग, जहाँ पर चेतना के समय आने वाले विचार और वासनाएँ ठहरती हैं, चेतनोन्मुख मन कहलाता है। चेतनोन्मुख मन और अचेतन मन में, एक मुख्य भेद यह है कि चेतनोन्मुख मन के अनुभव, प्रयत्न करने पर स्मृति में आ जाते हैं, किन्तु अचेतन मन में रहने वाले अनुभव प्रयत्न करने पर भी स्मृति में नहीं आते । उन्हें स्मृति-पटल पर लाने के लिए विशेष प्रकार का प्रयत्न करना पड़ता है । इस प्रकार मनोविज्ञान में मन के इन तीन रूपों का विस्तृत एवं गम्भीर अध्ययन किया जाता है। बिना मन की वृत्तियों के मनुष्य केवल एक पशु के तुल्य ही रह जाता है । मन जितना ही संस्कारी होता है, उसके व्यापार भी उतने ही अधिक सुन्दर होते हैं । किन्तु असंस्कारी मन कभी भी सन्मार्ग पर नहीं चल सकता । मनुष्य के तीन प्रकार के मनों में, उसका अचेतन मन एक प्रसंस्कारी मन है। चेतन मन की अपेक्षा अचेतन मन का भण्डार कहीं अधिक रहता है। चेतन मन में केवल वर्तमान काल में होने वाला अनुभव ही रहता है, किन्तु अचेतन मन में वह सब प्रकार का ज्ञान एवं अनुभव रहता है, जिसका मनुष्य को स्मरण भी नहीं रहता । अतः चेतन मन की अपेक्षा अचेतन मन अधिक बलवान है । मन की मूल शक्ति : मनोविज्ञान के पण्डितों के समक्ष सबसे विकट प्रश्न यह है कि मन की मूल शक्ति क्या है और उसका स्वरूप क्या है ? इस सम्बन्ध में मनोविज्ञान के पण्डितों में अनेक मत एवं विचार हैं । डा० फायड का कहना है कि जीवन के सभी कार्य एक मूल शक्ति द्वारा संचालित होते हैं । फ्रायड के पूर्व मनोविज्ञान के पण्डितों ने मन की अनेक शक्तियों का वर्णन किया था । मेगडूगल ने अपने से पूर्व होने वाले मनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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