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ब्रह्मचर्य-दर्शन
सच्ची साधना है । मन सध गया, तो सब कुछ सध गया और मन नही सधा तो कुछ भी नहीं सधा । मन का निरोध किए बिना जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य-योग की साधना करने का निश्चय करता है, वह उसी प्रकार हँसी का पात्र बनता है, जैसे एक पंगु व्यक्ति एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाने की इच्छा करके हास्यास्पद बन जाता है । जो साधक मन का निरोध नहीं कर पाता, वह इन्द्रिय का निग्रह भी नहीं कर सकता, और जो मनोनिरोध और इन्द्रिय का निग्रह नहीं कर सकता, वह ब्रह्मचर्य का पालन भी नहीं कर सकता । केवल किसी एक इन्द्रिय का निग्रह कर लेना ही ब्रह्मचर्य नहीं है, बल्कि समस्त इन्द्रियों और मन को विषयों से हटाना ही ब्रह्मचर्य की परिधि है, ब्रह्मचर्य की परिसीमा है। धर्म-शास्त्रों में इसी को ब्रह्मचर्य-योग कहा गया है।
वासना का प्रभाव दुर्बल मन के व्यक्ति पर ही पड़ता है। चोर का काम अंधेरे में है, उजाले में नहीं ।
वासना एक कसौटी है-अग्नि सोने को परखती, है, और वासना मनुष्य के मन को।
वासना खोटे सोने के समान चमती तो बहुत है, परन्तु परीक्षा की आग में पड़कर वह चमक स्थिर नहीं रहती ।
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