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________________ १२२ ब्रह्मचर्य दर्शन इस प्रकार जैन-धर्म की महान् साधना का एक मात्र उद्देश्य विकारों से लड़ना और उन्हें दूर करना ही है । विकार किस प्रकार दूर किए जा सकते हैं ? इस सम्बन्ध में भी जैन-धर्म ने निरूपण किया है । आचार्यों ने कहा है, कि यदि अहिंसा के भाव समझ में आ जाते हैं, तो दूसरे भाव भी समझ में आ जाएंगे। इसके लिए कहा गया है कि बाहर में चाहे हिंसा हो अथवा न हो, हिंसा का भाव आने पर अन्तर में हिंसा हो हो जाती है । इसी प्रकार जो असत्य बोलता है, वह अपने सद् गुणों की हिंसा करता है, और जो चोरी करता है, वह अपनी चोरी तो कर ही लेता है । सद्गुणों का अपहरण होना ही तो चोरी है । इस रूप में मनुष्य जब वासना का शिकार होता है, तब अन्तर में भी और बाहर में भी हिंसा हो जाती है । कोई विकार, चाहे बाहर में हिंसा न करे, किन्तु अन्तर में हिंसा अवश्य करता है । दियासलाई जब रगड़ी जाती है, तो वह पहले तो अपने आपको ही जला देती है, और जब वह दूसरों को जलाने जाती है तो सम्भव है, कि बीच में ही बुझ जाए और दूसरों को न जलाने पाए। मगर दूसरों को जलाने के लिए पहले स्वयं को तो जलाना पड़ता ही है । प्रत्येक वासना हिंसा है, ज्वाला है, और वह आत्मा को जलाती है। अपने विकारों के द्वारा हम तो नष्ट हो ही जाते हैं, फिर दूसरों को हानि पहुँचे या न पहुँचे । वातावरण अनुकूल मिल गया, तो दूसरों को हानि पहुंचा दी और न मिला तो हानि न पहुंचा सके । किन्तु अपनी हानि तो हो ही गई। दूसरों की परिस्थितियाँ और दूसरों का भाग्य हमारे हाथ में नहीं है । अगर वह अच्छा है, तो उन्हें हानि कैसे पहुंच सकती है ? उन्हें कैसे जलाया जा सकता है ? परन्तु दूसरे को जलाने का विचार करने वाला स्वयं को तो जरूर जला लेता है। __ इस कारण हमारा ध्येय अपने विकारों को दूर करना है। प्रत्येक विकार हिंसा-रूप है और यह भूलना नहीं चाहिए, कि बाहर में चाहे हिंसा हो या न हो, पर अन्तर में हिंसा हो ही जाती है । अतएव साधक का दृष्टिकोण यही होना चाहिए, कि वह अपने विकारों से निरन्तर लड़ता रहे और उन्हें परास्त करता चला जाए । विकारों को परास्त किया, कि ब्रह्मचर्य हमारे सामने आ गया । इस विवेचना से एक बात और समझ में आ जानी चाहिए, कि ब्रह्मचर्य की साधना के लिए आवश्यक है, कि हम दूसरी इन्द्रियों पर भी संयम रखें, अपने मन को भी काबू में रखें। आप ब्रह्मचर्य की साधना तो ग्रहण कर लें, किन्तु आँखों पर अंकुश न रखें, और बुरे से बुरे दृश्य देखा करें, तो क्या लाभ ? आँखों में जहर. भरता रहे, और संसार के रंगीन दृश्यों का मजा बाहर से लिया जाता रहे, और इधर ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखने का मंसूबा भी किया जाए, यह असम्भव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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