________________
ब्रह्मचर्य का प्रभाव
१२१
है, और जब साफ कर लिया गया, तब भी सोने का सोना ही है। उसमें चमक पहले भी थी. और बाद में भी है। बीच में भी थी, परन्तु जब वह कीचड़ में लथ-पथ हो गया, तो उसकी चमक दब गई। मांजने वाले ने बाहर से लगी हुई कीचड़ को साफ कर दिया, आए हुए विकार को हटा दिया, तो सोना अपने असली रूप में आ गया।
आत्मा के जो अनन्त गुण हैं, उनके विषय में भी जैनधर्म की यही धारणा है। जैनधर्म कहता है कि वे गुण बाहर से नहीं आते हैं, वे अन्दर में ही रहते हैं । परन्तु काम-क्रोधादि विकार उनकी चमक को दबा देते हैं । साधक का यही काम है, कि उन विकारों को हटा दे। हट जाएँगे, तो आत्मा के गुण अपनी असली आभा को लेकर स्वयं चमकने लगेंगे।
___ हिंसात्मक विकार को साफ करेंगे, तो अहिंसा चमकने लगेगी। असत्य का सफाया करेंगे, तो सत्य चमकने लगेगा। इसी प्रकार स्तेय-विकार को हटाने पर अस्तेय और विषय-वासना को दूर करने पर संयम की ज्योति हमें नजर आने लगेगी। जब क्रोध को दूर किया जाता है, तो क्षमा प्रकट हो जाती है और लोभ को हटाया जाता है, तो सन्तोष गुण प्रकट हो जाता है। अभिमान को दूर करना हमारा काम है, किन्तु नम्रता पैदा करना कोई नया काम नहीं है । वह तो आत्मा में मौजूद ही है। इसी प्रकार माया को हटाने के लिए हमें साधना करना है, सरलता को उत्पन्न करने के लिए किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है । सरलता तो आत्मा का स्वभाव ही है । माया के हटते ही वह उसी प्रकार प्रकट हो जाएगी, जैसे कीचड़ धुलते ही सोने में चमक आ जाती है।
जैन-धर्म में आध्यात्मिक दृष्टि से गुण-स्थानों का बड़ा ही सुन्दर और सूक्ष्म विवेचन किया गया है । उच्चतर भूमिका के एक एक गुण-स्थान, उस महान् प्रकाश की ओर जाने के सोपान हैं। किन्तु उन गुण-स्थानों को पैदा करने की कोई बात नहीं बतलाई है । यही बताया है, कि अमुक विकार को दूर किया, तो अमुक गुण-स्थान आ गया । मिथ्यात्व को दूर किया, तो सम्यक्त्व की भूमिका पर आ गए और अविरति को हटाया तो पांचवे-छठे गुण-स्थान को प्राप्त कर लिया। इसी प्रकार ज्यों-ज्यों विकार दूर होते जाते हैं गुण-स्थान को उच्चतर श्रेणि प्राप्त होती जाती है ।
सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं विरक्ति आदि आत्मा के मूल-भाव हैं। यह मूल-भाव जब आते हैं, तब कोई बाहर से खींच कर नहीं लाए जाते । उन्हें तो केवल प्रकट किया जाता है। हमारे घर में जो खजाना गड़ा हुआ है, उसे खोद लेना मात्र हमारा काम है, उस पर लदी हुई मिट्टी को हटाने की ही आवश्यकता है। मिट्टी हटाई और खजाना हाथ लगा । विकार को दूर किया, और आत्मा का मूल-भाव हाय बा गया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org