________________
विराट-भावना
यह करोड़ों रुपया कहाँ से आ रहा है ? चवन्नी-अठन्नी वाले साधारण दर्शकों की जेबें काट कर धन के ढेर लगाए जा रहे हैं और उसके बदले उन्हें वासनाओं का विष दिया जा रहा है।
पश्चिमी देशों में, अमेरिका की बात छोड़ दीजिए । वहाँ तो अर्धनग्न स्त्रियों के चित्रों के सिवाय समाज को कुछ नहीं दिया जाता है, पर अन्य देशों की बात ऐसी नहीं है । वहाँ सिनेमा शिक्षा, समाज-सुधार और देश-भक्ति आदि की उत्तम शिक्षा के प्रभावशाली साधन बना लिए गए हैं । वहाँ सिनेमा-घर क्या हैं ? मानो, विद्यालय हैं । हमारे रवीन्द्र बाबू ने अपनी पश्चिम यात्रा का हाल लिखा है । उसमें एक रूसी सिनेमा का भी उल्लेख किया है । वे लिखते हैं कि रूस में एक सिनेमा दिखाया जा रहा था। सेंकड़ों बच्चे भी उसे देख रहे थे । उसमें बताया जा रहा था, कि काले हबशियों को अमेरिका के गोरे लोग किस प्रकार यंत्रणाएं देते हैं और किस प्रकार उनसे घृणा करते हैं ? उसे देख-देख कर रूस के लोग हैरान हो रहे थे कि अमरीका में उसी देश की एक काली जाति के प्रति कितना भद्दा सलूक किया जा रहा है । यदि रंग नहीं मिलता है, तो क्या इतने मात्र से कोई जाति घृणा, द्वेष और अत्याचार की पात्र हो जाती है ? व्यर्थ ही क्यों उसके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जाता है, कि उसे शान्ति के साथ जीवन गुजारना ही कठिन हो जाए !
सिनेमा-हाउस में, दर्शकों में, एक ओर एक हब्शी भी बैठा था। ज्यों ही सिनेमा समाप्त हुआ और दर्शक बाहर निकले, तो उस हब्शी को बच्चों ने घेर लिया। बच्चे उससे चिपट गए और बोले-"तुम हमारे देश में क्यों नहीं रहते हो? हम तुम्हारा स्वागत करेंगे, तुम्हारे प्रति प्रेम पूर्ण व्यवहार करेंगे। सचमुच, तुम वहाँ बड़ा कष्ट पा रहे हो।"
आप देख सकते हैं, कि एक तरफ़ अपने देश को ऊंचा उठाने के लिए सिनेमा दिखलाए जाते हैं, उनकी सहायता से बालकों को शिक्षा दी जाती है. समाज की कुरीतियों को दूर किया जाता है और राष्ट्रीय, सामाजिक एवं आत्मिक चेतनाएं दी जाती हैं। इसके विपरीत दूसरी तरफ़ अनाचार, अनीति और वासनाओं का पाठ सिखलाया जा रहा है । वे क्या कर रहे हैं और तुम क्या कर रहे हो ? हमारे देश के सिनेमा, सिवाय वासना की आग में अधखिली कच्ची कलियों को झोंकने के और, कुछ भी नहीं कर रहे हैं।
__ जो देश हज़ारों और लाखों वर्षों पहले आध्यात्मिकता के उच्चतर शिखर पर आसीन रहा है, जिस देश के सामने भगवान् अरिष्टनेमि और पितामह भीष्म जैसे ब्रह्मचर्य के धनी महापुरुषों का उज्ज्वल आदर्श चमकता रहा है, जिस देश को भगवान् महावीर का 'तवेसु वा उत्तम बंभचेरं' का प्रेरणाप्रद प्रवचन सुनने को मिला है, अपने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org