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प्रस्तुत पुस्तक का अध्ययन करके पाठक समझ लेंगे, कि 'अस्तेय' क्या है ? और जीवन में इस महापाप से कैसे बचा जाए ? काला बाजार और घूसखोरी से जन-जीवन को क्या क्षति पहुँचती है ? मानव 'अस्तेय-व्रत' की आराधना करके स्तेय-वृत्ति से कैसे बच सकता है ? अपने जीवन को प्रामाणिक रखते हुए वह जन जीवन को कैसे सुधार सकता है ? आदि समस्याओं का दार्शनिक दृष्टि से उचित समाधान, पाठक, इस में पा सकेंगे। १० सितम्बर, १९९४
ओम प्रकाश जैन मन्त्री, सन्मति-ज्ञान-पीठ,
आगरा।
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