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प्रकाशकीय साधु महासम्मेलन की पूर्व भूमिका के रूप में, सम्प्रदाय-गत वैमनस्य और विरोध के उपशमन हेतु, बम्बई स्थित स्थानकवासी जैन महासभा के आग्रह से तथा विशेषतः व्यावर संघ की अत्यन्त भाव भरी प्रार्थना से (तत्कालीन उपाध्याय) श्रद्धेय पं. मुनि श्री अमरचन्द्र जी महाराज आगरा से देहली होते हुए उग्र विहार करके व्यावर पधारे, चातुर्मास के लिए।
___ कवि श्री जी स्थानकवासी समाज के सुप्रसिद्ध लेखक, कवि और विचारक तो हैं ही, परन्तु वक्तृत्व गुण भी उनमें सहज रूप में ही विद्यमान है। आपके प्रवचनों में वस्तु का दार्शनिक रूप से सूक्ष्म विश्लेषण होते हुए भी सरसता और मधुरता पर्याप्त रूप में रहती है। श्रोता कभी ऊबता नहीं है। और यही है, प्रवक्ता के प्रवचनों की सफलता, जिसमें कवि श्री पूर्णतः सफल और सिद्ध हस्त हैं ।
राजस्थान में यद्यपि कवि श्री जी नए ही थे, परन्तु उनके प्रवचनों की सरलता, मधुरता, स्पष्टता तथा हृदय-ग्राहिता ने श्रोताओं को सहसा रस-मुग्ध कर दिया। अतएव व्यावर संघ ने प्रवचनों के रूप में बहती हुई अखण्ड वागधारा को लिपिबद्ध कराने का शुभ संकल्प किया, जिसका सुफल प्रस्तुत पुस्तक के रूप में जनता के सामने है।
पाठकों के समक्ष, कवि श्री जी की उक्त व्यावर-प्रवचन माला में से अहिंसा-दर्शन', 'सत्य-दर्शन' और 'जीवन-दर्शन के रूप में तीन पुस्तकें पहुँच चुकी हैं। अब हमें परिवर्तित, परिवर्धित एवं संशोधित 'अस्तेय-दर्शन' के रूप में यह चौथी पुस्तक भी पाठकों के सम्मुख रखते हुए महान् हर्ष हो रहा है । यह उसका द्वितीय संस्करण है।
कवि श्री जी के प्रवचनों में आप अहिंसा, सत्य और जीवन के सम्बन्ध में बहुत कुछ जीवन तत्व प्राप्त कर सके होंगे? आशा है, अब पाठक 'अस्तेय' के सम्बन्ध में भी आगम-परम्परा पुरःसर नया दृष्टिकोण पढ़ कर अपने जीवन की बहुत-सी उलझी हुई समस्याओं को सुलझा सकेंगे। जीवन सफल करेंगे।
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