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________________ ५२/ अस्तेय दर्शन पशु-पक्षी मनुष्य की करुणा और दया के पात्र नहीं हैं, बल्कि मैं यह कहना चाहता हूँ कि ऐसी परिस्थिति में मनुष्य को अपना विवेक नहीं बिसारना है। इधर हजारों मन अनाज कबूतरों और चिड़ियों को डाला जा रहा है और समझा जा रहा है कि हम बड़ा भारी धर्म कर रहे हैं । और दूसरी तरफ देश के हजारों लाखों आदमी भूख के कारण मौत के मुँह में हैं। मैं पूछता हूँ कि यह मानवीय अधिकारों का अपहरण है अथवा नहीं? आप माने या न मानें यह मानव जाति के अधिकार का अपहरण है, अतः एक प्रकार की चोरी ही है। अस्तेय और दया : ___ जो इन्सान अनाज पर ही पलता है, उसे वह न देकर घास-पात खाने वालों को खिलाना, अधिकार का अपहरण करना नहीं तो क्या है ? बन्दरों को अनाप-सनाप अनाज डाला जाता है या नहीं ? सम्भव है, बन्दर ने अपने जीवन में, जन्म से लगा कर अब तक मीठा न चखा हो, फिर भी मंगलवार आएगा तो गुड़ का चूरमा उन्हें अवश्य खिलाया जाएगा। यह क्या बात है ? हम एक जगह ठहरे हुए थे। वहाँ देखा एक व्यक्ति धर्म की साधना कर रहा था। देश में अकाल का प्रकोप था, तब वह बंदरों को गुड़ का चूरमा खिला रहा था। बन्दर उपद्रव मचा रहे थे और जाते नहीं थे। आसपास खड़े बालक बन्दरों को मारने लगे तो वह भक्तराज उन्हें समझाने लगा कि 'ये बन्दर नहीं हैं, हनुमान जी हैं, रामजी के सेवक हैं। मगर जब बन्दरों का उपद्रव शान्त नहीं हुआ और वे उसकी चीजें उठा ले गए तो उन्हें भगवान, देवता एवं हनुमान समझने वाला परेशान हो गया और लाठी उठा कर उन्हें मारने दौड़ा, बुरी-बुरी गालियाँ बकने लगा।। यह घटना देखकर मैंने सोचा-अभी तक तो यह व्यक्ति इन बन्दरों को हनुमान समझ रहा था और अब खुद ही उन हनुमानों को मारने दौड़ रहा है। कितना बड़ा अंध विश्वास और अज्ञान है जीवन में ! यह भक्ति नहीं, अन्ध भक्ति है, अज्ञानभक्ति है। यह लोक-मूढ़ता है। इसमें विवेक के लिए कोई स्थान नहीं है। . साधारण स्थिति में पशुओं, पक्षियों, बन्दरों और मछलियों आदि के प्रति इस प्रकार की करूणा से प्रेरित दान प्रशंसनीय है। सिद्धान्ततः इसका विरोध नहीं किया जा सकता। एक युग था, जब देश में सहज प्रकृति से ही विशाल परिमाण में अन्न का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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