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________________ संस्कृति का संदेश-वाहक जैनधर्म और जैनसंस्कृति की, क्या साधु और क्या श्रावक, दोनों को ही सब से पहली शिक्षा यही है कि वह जीवन के दैनिक व्यवहारों में ईमानदारी से चले । जो व्यक्ति समाज से अलग रहता है, उससे भी यही अपेक्षा की जाती है और जो समाज के साथ काम कर रहा है, उससे भी यही आशा रक्खी जाती है कि वह अपने आप में ईमानदार रहे और अपने दायित्व को ठीक तरह से अदा करे। आप साधु से क्यों बड़ी भारी प्रामाणिकता की अपेक्षा रखते हैं ? क्योंकि वह भूमण्डल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, जहाँ भी कहीं जाता है, समाज के साथ अधिक सम्पर्क रखता है। लोग उसके परिचय में ज्यादा आते हैं। जब आते हैं, तो वह अपनी संस्कृति की छाप और वह जिस रास्ते पर चल रहा है, उसकी ईमानदारी की छाप, जनता के मन पर डाल सके तथा अपना और दूसरों का भी कल्याण कर सके ऐसी उससे आशा रक्खी जाती है। अस्तेय व्रत तथा व्यापार : ___ इसी प्रकार व्यापारी भी समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है। उसका जीवन बंधा हुआ जीवन नहीं है-उसका भी फैला हुआ जीवन है। उसका भी अधिक से अधिक जनता से वास्ता पड़ता है। अतएव उसे इस बात का ध्यान रखना है कि वह हजारों-लाखों के जीवन पर अपने जीवन की छाप डाल सके। जो भी व्यक्ति एक बार उसके परिचय में आए उसका जीवन ऐसा होना चाहिए कि, वह व्यक्ति दुबारा उसके पास आने की अभिलाषा करे और जहाँ कहीं भी वह जाए, उस व्यापारी के विषय में महान् विचार रख कर जाए। सम्भव है, व्यापारी के जीवन में बाहर की चोरियाँ दिखलाई न दें । वह डाका डालता हुआ, ताला तोड़ता हुआ, जेब कतरता हुआ या आँख बचाकर किसी की कोई वस्तु उठाता हुआ नजर न आये, किन्तु कुछ चीजें ऐसी हैं कि वे जीवन के नीचे ही नीचे, ऐसे चलती रहती हैं कि उन पर यदि ध्यान न दिया जाय और पूरी तरह प्रामाणिकता न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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