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________________ ६ / अस्तेय दर्शन कहाँ जाऊँगा ? थोड़ी-सी जगह दे दो तो यहीं चौमासा गुजार दूँ ।" सेठ ने कहा "भगवन् ! आपके लिए किस चीज की कमी है ? आप पधारे हैं तो आपको जितनी जगह चाहिए, उतनी ही मिलेगी। यह मेरा भवन है, आप कहें तो इसमें कमरे खाली कर दूँ ?" आगन्तुक सन्त ने अध्यात्म का राग छेड़ दिया। कहा "सेठ ! यह सब वैभव हमारे लिए किस काम का ? हम तो इसमें गल जाएँगे। हमारे लिए तो घास-फूस की झोंपड़ी चाहिए। संतों के लिए वही बड़ी चीज है। हमें महलों से क्या प्रयोजन है ? महल में तो आध्यात्मिक जीवन सड़ गल जाता है।" यह सुन कर सेठ के मन में सन्त के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई। उसने कहा "आपका विचार प्रशस्त है। मेरे महल के एक किनारे एक छोटी-सी झोंपड़ी भी है, आप उसमें विश्राम कीजिए ।" सम्स ने झोंपड़ी देख ली और तब कहा "हाँ, यह ठीक है।" वे उस झोंपड़ी में ठहर गये। सेठ जब कभी उनके पास जाता, वे अध्यात्म की बड़ी-बड़ी बातें करते। इस प्रकार उन्होंने अपना जाल फैलाना आरम्भ कर दिया । उस समय डाकेजनी होने लगी और बड़े-बड़े मालदारों का धन लूटा जाने लगा । जब इस प्रकार की घटनाएँ अधिक होने लगती हैं, तो स्वभावतः भय की भावना भी फैल जाती है। उस सेठ को भी भय ने घेर लिया। उसने विचार किया, कहीं डाकुओं की क्रूर दृष्टि मुझ पर भी न पड़ जाय । तब क्या करूँ, क्या न करूँ ? सोचते-सोचते उसे एक उपाय सूझ गया । सेठ के पास जो भी हीरे, जवाहर, अलंकार, आभूषण आदि थे, उन सब की उसने एक पोटली बाँधी और पोटली को लेकर झोंपड़ी में आया। संत से कहा, "महाराज, जीवन और सम्पत्ति सुरक्षित नहीं है, अतः यह पोटली आपके यहाँ रख देता हूँ।” सन्त ललाट पर सलवट डालकर और नाक सिकोड़ कर बोले "ना, ना सेठजी, इस माया को तो हम छोड़ कर चले हैं। इसे हम आँखों से भी नहीं देखना चाहते, स्पर्श करना तो दूर रहा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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