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________________ १००/ अस्तेय दर्शन इस सम्बन्ध में आज कोई क्या कह सकता है, किन्तु यह निश्चित है, कि उनके चिन्तन में भारतीय संस्कृति और परम्परा के ही परमाणु घुले-मिले थे। भारतीय संस्कृति का चिन्तन ही उनमें व्याप्त था। भारतीय संस्कृति और परम्परा के चिन्तन की उपज ही ‘गाँधीजी थे' यह कहना चाहिए। तो फिर मानना चाहिए, कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही उनकी कल्पना और उनके स्वप्न होते, और उस स्वप्न का ही एक चित्र उक्त आदर्श राष्ट्र की कल्पना में झलक रहा है। जैसा कि अक्षय जी ने कहा है-“देश में भौतिक समृद्धि निरन्तर बढ़ रही है। यह ठीक है, किन्तु उसके साथ तृष्णा एवं आकांक्षाएँ भी बढ़ती रही हैं, और साथ ही कर्म और श्रम में निष्ठा कम होती जा रही हैं। आवश्यकता और इच्छा दो अलग-अलग चीज हैं । आवश्यकता जीवन की मूलभूत अनिवार्यता है, जीवन जीने के लिए उसकी पूर्ति होनी ही चाहिए । किन्तु आवश्यकता के साथ असीम इच्छाएँ जब जुड़ जाती हैं, तो एक समस्या खड़ी हो जाती है। आज आवश्यकता के नाम पर इच्छाओं की सुरसा मुँह फैला रही है और इस जीवन के हनुमान को निगल जाना चाहती है। रामायण में बताया है-जब सुरसा अपना मुँह फैलाती गई और हनुमान भी अपने आपको फैलाते गये, तो दोनों में होड़ लग गई । समस्या सुलझी नहीं, किन्तु जब हनुमान ने सूक्ष्म रूप बनाया तब तुरन्त उसके मुँह से पार हो गए। इच्छाओं की सुरसा के सामने जीवन को फैलाते गए, तो कभी भी समस्या नहीं सुलझेगी। जीवन को सूक्ष्म बनाना होगा, हमें सिमटना होगा, तभी इच्छाओं के द्वन्द्व से पार हो सकेंगे। यह ठीक है कि जीवन की आवश्यकताएँ आज पहले से अधिक बढ़ गई हैं। किसी रूप में यह प्रगति का सूचक भी माना जा सकता है, किन्तु आवश्यकता तो बढ़ती हैं, मगर उसकी पूर्ति करने के लिए उचित श्रम और कर्म नहीं बढ़ता है, तो आवश्यकता समस्या बन जाती है । आवश्यकता और कर्म में संतुलन होना चाहिए। इस असंतुलन का ही परिणाम आज लूट-खसोट, भ्रष्टाचार, रिश्वत और मुनाफाखोरी के रूप में जीवन का सरदर्द बन रहा है। यदि आवश्यकता के साथ कर्म बढ़ता रहे, श्रम निष्ठा जगती रहे, तो शायद यह समस्या पैदा ही नहीं होगी, कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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