SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्तेय दर्शन / ९१ "रामं दशरथं विद्धि, मां, विद्धि जनकात्मजाम्, अयोध्या मटवीं विद्धि, गच्छ तात ! यथासुखम् ।" हे वत्स ! राम को दशरथ की तरह मानना, सीता को मेरे समान समझना और वन को अयोध्या मानना। राम के साथ वन में जा, देख राम की छाया से कभी दूर मत होना । यह भारतीय जीवन का आदर्श है, जो प्रत्येक भारतीय आत्मा में छलकता हुआ दिखाई देता है। यहाँ अधिकारों को ठुकराया जाता है, स्नेह और ममता के बंधन भी कर्तव्य की धार से काट दिए जाते हैं और एक दूसरे के लिए समर्पित हो जाते हैं । ____ महावीर और बुद्ध का युग देखिये, तब तरुण महावीर और बुद्ध विशाल राज वैभव, सुन्दरी का मधुर स्नेह और जीवन की समस्त भौतिक सुविधाओं को ठुकराकर सत्य की खोज में शून्य वनों एवं दुर्गम-पर्वतों में तपस्या करते घूमते हैं और सत्य की उपलब्धि कर उसे समग्र जनजीवन में प्रसारित करने में लग जाते हैं, और उनके पीछे सैकड़ों-हजारों राजकुमार, सामन्त और सामान्य नागरिक श्रमण भिक्षुक बनकर प्रेम और करुणा की अलख जगाते हुए सम्पूर्ण विश्व को प्रेम का संदेश देते हैं । वे प्रकाश बनकर स्वयं जलते हैं और घर-घर में, दर-दर में उजाला फैलाते हैं। अध्ययन की आँखों से जब हम इस उज्ज्वल अतीत को देखते हैं, तब मन श्रद्धा से भर जाता है। भारत के उन आदर्श पुरुषों के प्रति कृतज्ञता से मस्तक झुक जाता है, जिन्होंने स्वयं अमृत प्राप्त किया, और जो भी मिला उसे अमृत बाँटते चले गए। क्या यह वही भारत है ? अतीत के इस स्वर्णिम चित्र के समझ जब हम वर्तमान भारतीय जीवन का चित्र देखते हैं, तब मन सहसा विश्वास नहीं कर पाता, कि क्या यह उसी भारत का चित्र है? कहीं हम धोखा तो नहीं खा रहे हैं ? लगता है, इतिहास का वह साक्षात् घटित सत्य आज नाटकों की गाथा बन कर रह गया है। आज का मनुष्य पतंगे की तरह दिशा-हीन हुआ उड़ता जा रहा है। जिसे रुकने की फुर्सत नहीं है, और सामने कोई मंजिल नहीं है। अपने क्षुद्र स्वार्थ, दैहिक भोग और हीन ग्रन्थियों से वह इस प्रकार ग्रस्त हो गया है, कि उसकी विराटता, उसके अतीत आदर्श, उसकी अखण्ड राष्ट्रीय भावना सब कुछ छुईमुई हो गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy