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७-उरभ्रीय
५-पिता का आदेश पाकर तीन पुत्र व्यापार करने गये। एक व्यापार में बहुत धन कमाकर लौटा। दूसरा जैसे गया था, वैसे ही मूल पूँजी बचाकर लौट आया। और तीसरा जो पूँजी लेकर गया था, वह भी खो आया।
मनुष्य-जीवन मूल धन के समान है। मनुष्य जीवन से जो देवगति पाता है, वह उसका अतिरिक्त लाभ है । मनुष्य से मनुष्य की गति मूल धन की सुरक्षा है। और नरक अथवा तिर्यञ्च की गति मूल धन को भी गँवा देना है।
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