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६-क्षुल्लक-निर्ग्रन्थीय
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१७. एसणासमिओ लज्जू
एषणा समिति से युक्त लज्जावान् गामे अणियओ चरे। संयमी मुनि गाँवों में अनियत विहार अप्पमत्तो पमत्तेहि करे, अप्रमत्त रहकर गृहस्थों से पिंडवायं गवेसए॥ पिण्डपात-भिक्षा की गवेषणा करे। एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अनुत्तर ज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तर अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे। ज्ञान-दर्शन के धर्ता, अर्हन्-तत्त्व के अरहा नायपुत्ते भगवं व्याख्याता, ज्ञातपुत्र वैशालिक (तीर्थङ्कर वेसालिए वियाहिए॥ महावीर) ने ऐसा कहा है।
–त्ति बेमि।
—ऐसा मैं कहता हूँ।
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