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५-अकाममरणीय
४३.
१०. कायसा वयसा मत्ते
वित्ते गिद्धे य इत्थिसु। दुहओ मलं संचिणइ सिसुणागु व्व मट्टियं ।।
वह शरीर और वाणी से मत्त होता है, धन और स्त्रियों में आसक्त रहता है। वह राग और द्वेष दोनों से वैसे ही कर्म-मल संचय करता है, जैसे कि शिशुनाग (केंचुआ) अपने मुख और शरीर दोनों से मिट्टी संचय करता है।
फिर वह भोगासक्त बालजीव आतंकरोग से आक्रान्त होने पर ग्लान (खिन्न) होता है, परिताप करता है, अपने किए हुए कर्मों को यादकर परलोक से भयभीत होता है।
११. तओ पुट्ठो आयंकेणं
गिलाणो परितप्पई। पभीओ परलोगस्स कम्माणुप्पेहि अप्पणो॥
१२. सुया मे नरए ठाणा
असीलाणं च जा गई। बालाणं कूर-कम्माणं
पगाढा जत्थ वेयणा ॥ १३. तत्थोववाइयं ठाणं
जहा मेयमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गच्छन्तो सो पच्छा परितप्पई॥
वह सोचता है, मैंने उन नारकीय स्थानों के विषय में सुना है, जो शील से रहित क्रूर कर्म वाले अज्ञानी जीवों की गति है, और जहाँ तीव्र वेदना है। ___जैसा कि मैंने परम्परा से यह सुना है
उन नरकों में औपपातिक स्थिति है। अर्थात् वहाँ कुंभी आदि में तत्काल जन्म हो जाता है। आयुष्य क्षीण होने के पश्चात् अपने कृतकर्मों के अनुसार वहाँ जाता हुआ प्राणी परिताप करता
१४. जहा सागडिओ जाणं
समं हिच्चा महापहं। विसमं मग्गमोइण्णो अक्खे भग्गंमि सोयई॥
जैसे कोई गाड़ीवान् समतल महान् मार्ग को जानता हुआ भी उसे छोड़कर विषम मार्ग से चल पड़ता है और तब गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है।
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