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उत्तराध्ययन सूत्र
तीसरा अंग है श्रद्धा, अर्थात् यथार्थ दृष्टि । सत्य की प्रतीति । कुछ सुन और जान लेने पर भी तत्त्व-श्रद्धा का होना आवश्यक है । अत: श्रुति के बाद भी सच्ची श्रद्धा का होना परम दुर्लभ है।
अन्तिम है— पुरुषार्थ । चतर्थ अंग है यह। जो जाना है, जो श्रद्धा के रूप में स्वीकार किया है, उसके अनुसार उसी दिशा में श्रम अर्थात् पुरुषार्थ करना परम दुर्लभ है। यहाँ आकर और कुछ भी प्राप्त करने के लिए दुर्लभ नहीं रह जाता है।
मोक्ष-प्राप्ति के ये चार अंग हैं।
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