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अध्ययन ३४
गाथा - कर्मलेश्या का अर्थ है - कर्म बन्ध के हेतु रागादिभाव । लेश्याएँ भाव और द्रव्य के भेद से दो प्रकार की हैं। कुछ आचार्य कणायानुरंजित योग - प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं । इस दृष्टि से यह छद्मस्थ व्यक्ति को ही हो सकती हैं । किन्तु शुक्ल लेश्या १३ वें गुण स्थानवर्ती केवली को भी है, अयोगी केवली को नहीं । अतः योग की प्रवृत्ति ही लेश्या है । कषाय तो केवल उसमें तीव्रता आदि का संनिवेश करती है। आवश्यक चूर्णि में जिनदास महत्तर ने कहा है — “ लेश्याभिरात्मनि कर्माणि संश्लिष्यन्ते । योगपरिणामो लेश्या । जम्हा अयोगिकेवली अलेस्सो ।”
उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण
गाथा ११ - त्रिकटुक से अभिप्राय सूंठ, मिरच और पिप्पल के एक संयुक्त योग से है। " यादृशस्त्रिकटुकस्य शुंठि- मिरिच पिप्पल्यारसस्तीक्ष्णः " - सर्वार्थसिद्धिवृत्ति ।
गाथा २०– जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट के भेद से सर्वप्रथम लेश्या के तीन प्रकार हैं | जघन्य आदि तीनों के फिर जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट के भेद से तीन-तीन प्रकार होने से नौ भेद होते हैं। फिर इसी प्रकार क्रम से त्रिक की गुणनप्रक्रिया से २७, ८१ और २४३ भेद होते हैं। यह एक संख्या की वृद्धि का स्थूल प्रकार है । वैसे तारतम्य की दृष्टि से संख्या का नियम नहीं है । स्वयं उक्त अध्ययन (गा० ३३) में प्रकर्षापकर्ष की दृष्टि से लोकाकाश प्रदेशों के परिमाण के अनुसार असंख्य स्थान बताए हैं । अशुभ लेश्याओं के संक्लेशरूप परिणाम हैं, और शुभ के विशुद्ध परिणाम हैं
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गाथा ३४ – मुहूर्तार्ध शब्द से सर्वथा बराबर समविभाग रूप 'अर्ध' अर्थ विवक्षित नहीं है । अत: एक समय से ऊपर और पूर्ण मुहूर्त से नीचे के सभी छोटेबड़े अंश विवक्षित हैं । इस दृष्टि से मुहूर्तार्ध का अर्थ अन्तर्मुहूर्त है ।
गाथा ३८ – यहाँ पद्म लेश्या की एक मुहूर्त अधिक दस सागर की स्थिति जो बताई है, उसमें मुहूर्त से पूर्व एवं उत्तर भव से सम्बन्धित दो अन्तर्मुहूर्त विवक्षित हैं ।
नीलेश्या आदि के स्थिति वर्णन में जो पल्योपम का असंख्येय भाग बताया है, उसमें भी पूर्वोत्तर भवसम्बन्धी अन्तर्मुहूर्तद्वय प्रक्षिप्त हैं। फिर भी सामान्यतः असंख्येय भाग कहने से कोई हानि नहीं है। क्योंकि असंख्येय के भी असंख्येय भेद होते हैं ।
गाथा ४५-४६ – निर्यंच और मनुष्यों में जघन्य और उत्कृष्ट दोनों ही रूप से लेश्याओं की स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । यह भाव लेश्या की दृष्टि से कथन है । छद्मस्थ व्यक्ति के भाव अन्तर्मुहूर्त से अधिक एक स्थिति में नहीं रहते ।
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