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उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण
पापश्रुत के २९ भेद
(१) भौम भूमिकम्प आदि का फल बताने वाला शास्त्र । (२) उत्पात रुधिर वृष्टि, दिशाओं का लाल होना इत्यादि का शुभाशुभ फल बताने वाला निमित्त शास्त्र । (३) स्वप्नशास्त्र । (४) अन्तरिक्ष-आकाश में होने वाले ग्रहवेध आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र । (५) अंग शास्त्र-शरीर के स्पन्दन आदि का फल कहने वाला शास्त्र । (६) स्वर शास्त्र । (७) व्यंजन शास्त्र तिल, मष आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र । (८) लक्षण शास्त्र स्त्री पुरुषों के लक्षणों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र।
ये आठों ही सूत्र, वृत्ति और वार्तिक के भेद से चौबीस शास्त्र हो जाते हैं।
(२५) विकथानुयोग = अर्थ और काम के उपायों को बताने वाले शास्त्र, जैसे वात्स्यायनकृत कामसूत्र आदि । (२६) विद्यानुयोग = रोहिणी आदि विद्याओं की सिद्धि के उपाय बताने वाले शास्त्र । (२७) मन्त्रानुयोग= मन्त्र आदि के द्वारा कार्यसिद्धि बताने वाले शास्त्र । (२८) योगानुयोग = वशीकरण आदि योग बताने वाले शास्त्र । (२९) अन्यतीर्थिकानुयोग= अन्यतीर्थिकों द्वारा प्रवर्तित एवं अभिमत हिंसाप्रधान आचारशास्त्र। महा मोहनीय के ३० स्थान
१. त्रस जीवों को पानी में डूबा कर मारना। २. त्रस जीवों को श्वास आदि रोक कर मारना। ३. त्रस जीवों को मकान आदि में बंद करके धुएँ से घोट कर मारना। ४. त्रस जीवों को मस्तक पर दण्ड आदि का घातक प्रहार करके मारना। ५. त्रस जीवों को मस्तक पर गीला चमड़ा आदि बाँध कर मारना। ६. पथिकों को धोखा देकर लूटना। ७. गुप्तरीति से अनाचार का सेवन करना। ८. दूसरे पर मिथ्या कलंक लगाना । ९. सभा में जान बूझकर मिश्र भाषा-सत्य जैसा प्रतीत होने वाला झूठ बोलना। १०. राजा के राज्य का ध्वंस करना। ११. बाल-ब्रह्मचारी न होते हुए भी बाल-ब्रह्मचारी कहलाना । १२. ब्रह्मचारी न होते हुए भी ब्रह्मचारी का ढोंग रचना । १३. आश्रयदाता का धन चुराना। १४. कृत उपकार को न मानकर कृतघ्नता करना। १५. गृहपति अथवा संघपति आदि की हत्या करना। १६. राष्ट्रनेता की हत्या करना। १७. समाज के आधारभूत विशिष्ट परोपकारी पुरुष की हत्या करना। १८. दीक्षित साधु को संयम से भ्रष्ट करना। १९. केवल ज्ञानी की निन्दा करना। २०. अहिंसा आदि मोक्ष मार्ग की बुराई करना। २१. आचार्य तथा उपाध्याय की निन्दा करना । २२. आचार्य तथा उपाध्याय की सेवा न करना। २३. बहुश्रुत न होते हुए भी बहुश्रुत पण्डित कहलाना। २४. तपस्वी न होते हुए भी अपने को तपस्वी कहना। २५. शक्ति होते हुए भी अपने आश्रित वृद्ध, रोगी
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